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औघट घाट: Jun 30, 2009
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कहीं छूट न जाए पकड़ वक्त से या फ़िर सही अंत जीवन का. Tuesday, June 30, 2009. एक दिन शाम को. तालाब का किनारा. धुँए सी सफ़ेद. कतारों में हरिकेन. सुलग रहे है. रोटी की महक. और मेरे सिगरेट के कश. वक्त को जिंदगी में बदल दिया है. में जिंदगी की सबसे हसींन साँस ले रहा हूँ. मानो वक्त को उँगलियों पर लपेट लिया हो मैने. गाँव की लड़कियां अब औरते हो गई है. कुछ अभी भी मेरी आंखों में पिघल रही है. मेरा दोस्त मुर्गा सेक रहा है. और में जिंदगी चख रहा हूँ. प्रस्तुतकर्ता. प्रतिक्रियाएँ:. Subscribe to: Posts (Atom). कित...
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संजय व्यास: April 2013
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Wednesday, April 3, 2013. प्रासाद. अब ये इमारत उसके ठीक सामने थी. Subscribe to: Posts (Atom). प्रिय पते. कबाड़खाना. ज़ुल्फ़ बिखरा के निकले वो घर से. बेकल उत्साही को श्रद्धांजलि. उनकी इसी ग़ज़ल से पहले पहल उनसे तार्रुफ़ हुआ था. आवाज़ अहमद हुसैन-मुहम्मद हुसैन की -. सिद्धार्थ. Links for 2016-12-01 [del.icio.us]. Sponsored: 64% off Code Black Drone with HD Camera Our #1 Best-Selling Drone- Meet the Dark Night of the Sky! प्रतिभा की दुनिया . न दैन्यं न पलायनम्. लिली पाण्डेय. Hathkadh । हथकढ़. लगभग एक महीन...
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हलंत: February 2011
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Saturday, 19 February 2011. सन्नाटे में बेरंग तस्वीरें. पुराना पड़ रहा हूँ नए पानी के साथ. खाली बोतल उदासी का सबब है और आधी खाली हुई बोतल के बाकी हिस्से में उदासी छुटी रह जाती है…. गाय का गला या घर की दीवार, मेरे भीतर अनगिनत ध्वनियाँ हैं. रीत गया कुछ अभी बीता नही. तस्वीरों में रह गए लोग. होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मेरे आगे…. प्रस्तुतकर्ता. इस पोस्ट से संबंधित लिंक. लेबल फ़ोटोग्राफी. Tuesday, 15 February 2011. यूँही निर्मल वर्मा - 1. स्मृतियों से भी. पिक्चर-पोस्टकार्ड. का प्रोग्राम. जैसे एक झी...क्ष...
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मन का पाखी: January 2012
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मन का पाखी. No posts. Show all posts. No posts. Show all posts. Subscribe to: Posts (Atom). स्वाभिमान टाइम्स में प्रकाशित आलेख ". View my complete profile. उड़न तश्तरी . न दैन्यं न पलायनम्. Dr Smt. Ajit Gupta. मेरी भावनायें. Aradhana-आराधना का ब्लॉग. किस्सा-कहानी. नुक्कड़. अंतर्मंथन. वीर बहुटी. अपनी बात. पाल ले इक रोग नादां. मेरी बातें. कुछ मेरी कलम से kuch meri kalam se *. देशनामा. शब्दों का सफर. अपनी, उनकी, सबकी बातें. नन्ही परी. सफ़ेद घर. ज्ञानवाणी. घुघूतीबासूती. बना रहे बनारस. मानसिक हलचल.
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मन का पाखी: September 2011
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मन का पाखी. Sunday, September 25, 2011. दो वर्ष पूरा होने की ख़ुशी ज्यादा या गम. और मैने ". हाथों की लकीरों सी उलझी जिंदगी. लिख डाली. मैने समीर जी. से वादा भी किया था.कि डा. समीर. सब जैसे मेरे जाने-पहचाने हैं. प्रसंगवश ये भी बता दूँ कि ये 'नाव्या'. नाम मैने कहाँ से लिया था? मैने कहीं ये पढ़ा और ये नाव्या नाम तभी भा गया. नाम ऐसे ही चुना था :). हाथों की लकीरों सी उलझी जिंदगी. एक पोस्ट. Links to this post. Subscribe to: Posts (Atom). View my complete profile. उड़न तश्तरी . Dr Smt. Ajit Gupta.
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सत्यापन : October 2012
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कविता - मराठी अनुवाद. कहानी - मराठी अनुवाद. समीक्षा. कहानी 'घंटी' पर मिथिलेश वामनकर जी के विचार. Labels: समीक्षा. कविता "कहाँ जाओगी, दुर्गा" का मराठी अनुवाद. कुठे जाणार, दुर्गा . जळत आहेत डोळे आता कि अजुन वाचला नाही मी पूर्ण पेपर. फेसबुक चे सारे अपडेट्स सुद्धा पाहू-वाचू शकलो नाही. बस्स दिसली फोटो दुर्गा ची. नकारत आहे कोणी माझ्या आतून. चल गोळी खा, झोपी जा. Labels: कविता- मराठी अनुवाद. चूल्हा.कविता. कैलाश वानखेड़े. छिपमछई खेलती है. बोल कहाँ जायेगी. पता है उसका पत्ता . Labels: कविता. मेरे म...दिव...
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पुनर्विचार: क्या शताब्दियाँ स्मृति से भी अधिक विस्मृति का वितान रचती हैं?
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पुनर्विचार. Sunday, December 12, 2010. क्या शताब्दियाँ स्मृति से भी अधिक विस्मृति का वितान रचती हैं? इस शताब्दी -समय में. जरूरी है सांस्कृतिक स्मृति को जीवित रखना. तारीखें इस में मददगार होती हैं. भुवनेश्वर को याद किया उन के जन्म के शहर शाहजहांपुर ने . शाहजहांपुर के बाहर भुवनेश्वर को कितना याद किया गया? हिंदी समाज को भुवनेश्वर की याद क्यों न आयी? क्या उन्हें भुलाया जा सकता है? यह चुनाव कौन करता है? प्रस्तुतकर्ता. आशुतोष कुमार. प्रतिक्रियाएँ:. आशुतोष जी ,. December 12, 2010 at 5:50 PM. ज़ील जी न...दूस...
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पुनर्विचार: देखते है - नाच
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पुनर्विचार. Saturday, April 16, 2011. देखते है - नाच. अज्ञेय की कविता ' नाच ' पर एक बतकही.). एक तनी हुई रस्सी है जिस पर मैं नाचता हूँ।. जिस तनी हुई रस्सी पर मैं नाचता हूँ. वह दो खम्भों के बीच है।. रस्सी पर मैं जो नाचता हूँ. वह एक खम्भे से दूसरे खम्भे तक का नाच है।. दो खम्भों के बीच जिस तनी हुई रस्सी पर मैं नाचता हूँ. उस पर तीखी रोशनी पड़ती है. जिस में लोग मेरा नाच देखते हैं।. न मुझे देखते हैं जो नाचता है. न रस्सी को जिस पर मैं नाचता हूँ. पर मैं जो नाचता. पर तनाव ढीलता नहीं. नाच'-अज्ञेय ). नाच भ...
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पुनर्विचार: February 2011
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पुनर्विचार. Sunday, February 6, 2011. मार्क्सवादी आलोचना के प्रतिसंधों पर. संतोष चतुर्वेदी संपादित ' अनहद ' के पहले अंक में प्रकाशित. समीक्षा के बहाने हिंदी की मार्क्सवादी आलोचना की नयी बहसों का एक जायजा.). वर्ग के लिए, विचारधारा के लिए? या जीवन और उस की साहित्यिक कलात्मक पुनर्रचना के लिए भी? क्या प्रतिबद्धता पर्याप्त है? अनिवार्य है? या वह महज़ एक राजनीति वैचारिक संकीर्णता है? समाज और साहित्य के द्वंदात्मक रिश्ते प् र दो...प्रत्येक आवाज खटका है. बच्चे का मॉं! कहकर पुकारना. कोई बचा है. हो सकत...
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कुमार अम्बुज: January 2013
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कुमार अम्बुज. मंगलवार, 29 जनवरी 2013. पाठ्य पुस्तकें और राष्ट्रीय कविता. असुविधा ब्लॉग पर यह आलेख कवि अशोक कुमार पांडे ने दिया था।. यहॉं अपने ब्लॉग पर महज दस्तावेजीकरण के लिए और. उन साथियों के लिए जिन्होंने इसे पूर्व में नहीं पढ़ा है।. पाठ्य पुस्तकें और राष्ट्रीय कविता. जैसे राष्ट्र सिर्फ सीमाओं से बनता है, किसी मनुष्य समाज से नहीं।. प्रस्तुतकर्ता. कुमार अम्बुज. 1 टिप्पणी:. मंगलवार, 8 जनवरी 2013. जीवन का चुनाव. वाया-पुष्यमित्र. मैंने. मैंने. पुष्यमित्र. प्रस्तुतकर्ता. लड़कियो! धरती की...टॉप...
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