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सबद

सुधांशु फ़िरदौस की कविताएं. Photo : André Kertész
. रात चांद के हंसुए से आकाश में घूम-घूम. काट रही थी तारों की फ़सल. खिड़की से नूर की बूंदें टपक रही थीं. हमारे स्वेद से भीगे नंगे बदन पर. रतिमिश्रित प्रेम के सुवास से ईर्ष्यादग्ध रात की रानी. अपने फूलों को अनवरत गिराए जा रही थी. भोर होने वाली थी और नींद से कोसों दूर हम दोनों. एक दूसरे के आकाश में. आवारा बादलों की तरह तितर रहे थे. शरद की पूर्णिमा. कतिका धान की दुधाई गमक. ओस से भीगी दूब पर. ज़ामिद दो नंगे पैर. गड़हे से बाहर उछल. मछलियां. गुलज़ारिश. उसका ऊपर&...

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सुधांशु फ़िरदौस की कविताएं. Photo : André Kertész
. रात चांद के हंसुए से आकाश में घूम-घूम. काट रही थी तारों की फ़सल. खिड़की से नूर की बूंदें टपक रही थीं. हमारे स्वेद से भीगे नंगे बदन पर. रतिमिश्रित प्रेम के सुवास से ईर्ष्यादग्ध रात की रानी. अपने फूलों को अनवरत गिराए जा रही थी. भोर होने वाली थी और नींद से कोसों दूर हम दोनों. एक दूसरे के आकाश में. आवारा बादलों की तरह तितर रहे थे. शरद की पूर्णिमा. कतिका धान की दुधाई गमक. ओस से भीगी दूब पर. ज़ामिद दो नंगे पैर. गड़हे से बाहर उछल. मछलियां. गुलज़ारिश. उसका ऊपर&...
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सबद | vatsanurag.blogspot.com Reviews

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सुधांशु फ़िरदौस की कविताएं. Photo : André Kertész
. रात चांद के हंसुए से आकाश में घूम-घूम. काट रही थी तारों की फ़सल. खिड़की से नूर की बूंदें टपक रही थीं. हमारे स्वेद से भीगे नंगे बदन पर. रतिमिश्रित प्रेम के सुवास से ईर्ष्यादग्ध रात की रानी. अपने फूलों को अनवरत गिराए जा रही थी. भोर होने वाली थी और नींद से कोसों दूर हम दोनों. एक दूसरे के आकाश में. आवारा बादलों की तरह तितर रहे थे. शरद की पूर्णिमा. कतिका धान की दुधाई गमक. ओस से भीगी दूब पर. ज़ामिद दो नंगे पैर. गड़हे से बाहर उछल. मछलियां. गुलज़ारिश. उसका ऊपर&...

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सबद: 15_06

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सुधांशु फ़िरदौस की कविताएं. Photo : André Kertész
. रात चांद के हंसुए से आकाश में घूम-घूम. काट रही थी तारों की फ़सल. खिड़की से नूर की बूंदें टपक रही थीं. हमारे स्वेद से भीगे नंगे बदन पर. रतिमिश्रित प्रेम के सुवास से ईर्ष्यादग्ध रात की रानी. अपने फूलों को अनवरत गिराए जा रही थी. भोर होने वाली थी और नींद से कोसों दूर हम दोनों. एक दूसरे के आकाश में. आवारा बादलों की तरह तितर रहे थे. शरद की पूर्णिमा. कतिका धान की दुधाई गमक. ओस से भीगी दूब पर. ज़ामिद दो नंगे पैर. गड़हे से बाहर उछल. मछलियां. गुलज़ारिश. उसका ऊपर&...

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सबद: 13_04

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आशुतोष दुबे की ६ नई कविताएं. देखने वालों के दो हिस्से हो जाते हैं. यह नदी दोनों तरफ बह रही है. तुम जिस तरफ देखते रहोगे. बह जाओगे उसी तरफ. देखते रहना ही बह जाना है. अक्सर देखने वालों के दो हिस्से हो जाते हैं. एक साथ अलग-अलग दिशाओं में बहते हुए. उनका आधा हमेशा अपने दूसरे आधे की तलाश में होता है. दो अधूरेपन विपरीत दिशाओं में बहते हुए. एक-दूसरे को खोजते रहते हैं. समुद्र इस नदी का इंतज़ार करता रह जाता है. प्रेक्षक. जैसा वह था. नहीं रहा. बत्तियाँ जल जाने के बाद. बाहर निकलने के लिए. कौन होगा? जान से ...बंद...

3

सबद: 13_03

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रानीखेत एक्‍सप्रेस - दूसरा अंश - गीत चतुर्वेदी. युवा कवि-कथाकार गीत चतुर्वेदी. का उपन्‍यास 'रानीखेत एक्‍सप्रेस'. शीघ्र प्रकाश्‍य है. सबद पर इससे पहले इस उपन्‍यास का एक अंश प्रकाशित. हो चुका है. यह दूसरा अंश-]. Pic by : Henri Cartier-Bresson, Romania, 1975. हा हा। हड़बड़े पुरुषों के शीघ्र-स्खलन की तरह।. असंतोष संजीवनी बूटी की तरह होता है। आपको बार-बार जि़ंदा करता है।. मैं उसे रंगीन फिल्म की तरह देखती थी।. मुझे कभी-कभी हंसी आ जाती थी। महसूस ...Pic by Katerina Lomonosov. जो मनचले थे, व&#23...और कुछ न&...

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सबद: 14_04

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स्मृति-शेष : ताद्यूश रूज़ेविच. पोलिश कवि ताद्यूश रूज़ेविच का 24 अप्रैल को 92 वर्ष की आयु में देहांत हो गया। मूर्धन्य हिंदी कवि. कुंवर नारायण. रूज़ेविच की कई कविताओं का वक़्त-वक़्त पर हिंदी में अनुवाद किया है। हम श्रद्धांजलि स्वरूप. उनमें से 4 काव्यानुवाद प्रकाशित कर रहे हैं।. तमाम कामकाज के बीच. तमाम कामकाज के बीच. मैं तो भूल ही गया था. कि मरना भी है. लापरवाही. में उस कर्त्तव्य से कतराता रहा. या निबाहा भी. तो जैसे तैसे. अब कल से. बिना समय बरबाद किये।. प्रूफ़. सौभाग्य. एक समय था. और अब मैं. एदुआर&#2...

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सबद

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बहुत ख़ामोशी से सबद सातवें वर्ष में प्रवेश कर रहा है।. इस अवसर पर युवा कविता के एकदम अलग स्वर अम्बर रंजना पाण्डेय. की नई कविता आपके सम्मुख है। अंबर की कविताएं सबद पर यहां. भी पढ़ी जा सकती हैं।. चित्र-कृति : एम एफ हुसेन. इन्दौर के एक बोहरी की सलिलक्वॉय. डबलरोटी के आटे जैसी बाँहें। ऐसी नाज़ुक जैसे बाँहें न. होकर फकत बाँहों का ख़याल हो। जरा पकड़ लो तो उंगिलयां बन जाती।. चंद नमकीन मोती। बगल से एक हरी नस चल कर या यूँ कहूँ. कभी भी. वैसे ही कुछ उसके. उरोज थे।. एक छाती के. थोड़ा. शबोरोज़. छोटी बहन. उस रोज&...

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औघट घाट: Jun 30, 2009

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कहीं छूट न जाए पकड़ वक्त से या फ़िर सही अंत जीवन का. Tuesday, June 30, 2009. एक दिन शाम को. तालाब का किनारा. धुँए सी सफ़ेद. कतारों में हरिकेन. सुलग रहे है. रोटी की महक. और मेरे सिगरेट के कश. वक्त को जिंदगी में बदल दिया है. में जिंदगी की सबसे हसींन साँस ले रहा हूँ. मानो वक्त को उँगलियों पर लपेट लिया हो मैने. गाँव की लड़कियां अब औरते हो गई है. कुछ अभी भी मेरी आंखों में पिघल रही है. मेरा दोस्त मुर्गा सेक रहा है. और में जिंदगी चख रहा हूँ. प्रस्तुतकर्ता. प्रतिक्रियाएँ:. Subscribe to: Posts (Atom). कित&#23...

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संजय व्यास: April 2013

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Wednesday, April 3, 2013. प्रासाद. अब ये इमारत उसके ठीक सामने थी. Subscribe to: Posts (Atom). प्रिय पते. कबाड़खाना. ज़ुल्फ़ बिखरा के निकले वो घर से. बेकल उत्साही को श्रद्धांजलि. उनकी इसी ग़ज़ल से पहले पहल उनसे तार्रुफ़ हुआ था. आवाज़ अहमद हुसैन-मुहम्मद हुसैन की -. सिद्धार्थ. Links for 2016-12-01 [del.icio.us]. Sponsored: 64% off Code Black Drone with HD Camera Our #1 Best-Selling Drone- Meet the Dark Night of the Sky! प्रतिभा की दुनिया . न दैन्यं न पलायनम्. लिली पाण्डेय. Hathkadh । हथकढ़. लगभग एक महीन&#23...

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हलंत: February 2011

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Saturday, 19 February 2011. सन्नाटे में बेरंग तस्वीरें. पुराना पड़ रहा हूँ नए पानी के साथ. खाली बोतल उदासी का सबब है और आधी खाली हुई बोतल के बाकी हिस्से में उदासी छुटी रह जाती है…. गाय का गला या घर की दीवार, मेरे भीतर अनगिनत ध्वनियाँ हैं. रीत गया कुछ अभी बीता नही. तस्वीरों में रह गए लोग. होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मेरे आगे…. प्रस्तुतकर्ता. इस पोस्ट से संबंधित लिंक. लेबल फ़ोटोग्राफी. Tuesday, 15 February 2011. यूँही निर्मल वर्मा - 1. स्मृतियों से भी. पिक्चर-पोस्टकार्ड. का प्रोग्राम. जैसे एक झ&#2368...क्ष...

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मन का पाखी: January 2012

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मन का पाखी. No posts. Show all posts. No posts. Show all posts. Subscribe to: Posts (Atom). स्वाभिमान टाइम्स में प्रकाशित आलेख ". View my complete profile. उड़न तश्तरी . न दैन्यं न पलायनम्. Dr Smt. Ajit Gupta. मेरी भावनायें. Aradhana-आराधना का ब्लॉग. किस्सा-कहानी. नुक्कड़. अंतर्मंथन. वीर बहुटी. अपनी बात. पाल ले इक रोग नादां. मेरी बातें. कुछ मेरी कलम से kuch meri kalam se *. देशनामा. शब्दों का सफर. अपनी, उनकी, सबकी बातें. नन्ही परी. सफ़ेद घर. ज्ञानवाणी. घुघूतीबासूती. बना रहे बनारस. मानसिक हलचल.

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मन का पाखी: September 2011

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मन का पाखी. Sunday, September 25, 2011. दो वर्ष पूरा होने की ख़ुशी ज्यादा या गम. और मैने ". हाथों की लकीरों सी उलझी जिंदगी. लिख डाली. मैने समीर जी. से वादा भी किया था.कि डा. समीर. सब जैसे मेरे जाने-पहचाने हैं. प्रसंगवश ये भी बता दूँ कि ये 'नाव्या'. नाम मैने कहाँ से लिया था? मैने कहीं ये पढ़ा और ये नाव्या नाम तभी भा गया. नाम ऐसे ही चुना था :). हाथों की लकीरों सी उलझी जिंदगी. एक पोस्ट. Links to this post. Subscribe to: Posts (Atom). View my complete profile. उड़न तश्तरी . Dr Smt. Ajit Gupta.

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सत्यापन : October 2012

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कविता - मराठी अनुवाद. कहानी - मराठी अनुवाद. समीक्षा. कहानी 'घंटी' पर मिथिलेश वामनकर जी के विचार. Labels: समीक्षा. कविता "कहाँ जाओगी, दुर्गा" का मराठी अनुवाद. कुठे जाणार, दुर्गा . जळत आहेत डोळे आता कि अजुन वाचला नाही मी पूर्ण पेपर. फेसबुक चे सारे अपडेट्स सुद्धा पाहू-वाचू शकलो नाही. बस्स दिसली फोटो दुर्गा ची. नकारत आहे कोणी माझ्या आतून. चल गोळी खा, झोपी जा. Labels: कविता- मराठी अनुवाद. चूल्हा.कविता. कैलाश  वानखेड़े. छिपमछई खेलती है. बोल कहाँ जायेगी. पता है उसका पत्ता . Labels: कविता. मेरे म&#23...दिव...

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पुनर्विचार: क्या शताब्दियाँ स्मृति से भी अधिक विस्मृति का वितान रचती हैं?

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पुनर्विचार: देखते है - नाच

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पुनर्विचार. Saturday, April 16, 2011. देखते है - नाच. अज्ञेय की कविता ' नाच ' पर एक बतकही.). एक तनी हुई रस्सी है जिस पर मैं नाचता हूँ।. जिस तनी हुई रस्सी पर मैं नाचता हूँ. वह दो खम्भों के बीच है।. रस्सी पर मैं जो नाचता हूँ. वह एक खम्भे से दूसरे खम्भे तक का नाच है।. दो खम्भों के बीच जिस तनी हुई रस्सी पर मैं नाचता हूँ. उस पर तीखी रोशनी पड़ती है. जिस में लोग मेरा नाच देखते हैं।. न मुझे देखते हैं जो नाचता है. न रस्सी को जिस पर मैं नाचता हूँ. पर मैं जो नाचता. पर तनाव ढीलता नहीं. नाच'-अज्ञेय ). नाच भ&#23...

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पुनर्विचार: February 2011

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पुनर्विचार. Sunday, February 6, 2011. मार्क्सवादी आलोचना के प्रतिसंधों पर. संतोष चतुर्वेदी संपादित ' अनहद ' के पहले अंक में प्रकाशित. समीक्षा के बहाने हिंदी की मार्क्सवादी आलोचना की नयी बहसों का एक जायजा.). वर्ग के लिए, विचारधारा के लिए? या जीवन और उस की साहित्यिक कलात्मक पुनर्रचना के लिए भी? क्या प्रतिबद्धता पर्याप्त है? अनिवार्य है? या वह महज़ एक राजनीति वैचारिक संकीर्णता है? समाज और साहित्य के द्वंदात्मक रिश्ते प् र दो...प्रत्‍येक आवाज खटका है. बच्‍चे का मॉं! कहकर पुकारना. कोई बचा है. हो सकत&#23...

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कुमार अम्‍बुज: January 2013

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कुमार अम्‍बुज. मंगलवार, 29 जनवरी 2013. पाठ्य पुस्‍तकें और राष्‍ट्रीय कविता. असुविधा ब्‍लॉग पर यह आलेख कवि अशोक कुमार पांडे ने दिया था।. यहॉं अपने ब्‍लॉग पर महज दस्‍तावेजीकरण के लिए और. उन साथियों के लिए जिन्‍होंने इसे पूर्व में नहीं पढ़ा है।. पाठ्य पुस्तकें और राष्ट्रीय कविता. जैसे राष्ट्र सिर्फ सीमाओं से बनता है, किसी मनुष्य समाज से नहीं।. प्रस्तुतकर्ता. कुमार अम्‍बुज. 1 टिप्पणी:. मंगलवार, 8 जनवरी 2013. जीवन का चुनाव. वाया-पुष्यमित्र. मैंने. मैंने. पुष्यमित्र. प्रस्तुतकर्ता. लड़कियो! धरती की...टॉप...

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Tie Sydämeen Käy...

Tässäpä kakkua sitten pienen tytön ristiäisiin. Täytteenä tässä on mansikkaa ja kermaa. Pursotuksiin käytin Floran kuohua, jota kaupasta löysin ja päätin kokeilla :) Tuote on ihan ok, mutta silti jatkossa pitäydyn tutussa ja turvallisessa Floran vispissä. Pohjina tässä kakussa on 3 kpl 5 munan vetopohjia, joista yksi on suklainen. Koristeet marsipaania. Keskeltä puuttuu vielä "pääkoriste", josta laitan kuvan sitten, kun vanhemmat ovat nimen julkistaneet ;). Kinkkutäytteeseen tuli seuraavia aineksia:.

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Death by post lunch Powerpoint. October 16, 2011. Written on a hang over filled day, during a presentation session immediately after a heavy lunch. Meaningless. This is neither pain nor pleasure. Neither shortsight nor long;. Two distinct sounds under the skull,. One hardly audible, the other painful;. All the words I wanted to say. All the tasks I wanted to make hay,. Flush towards my surreal way. What a wierd feeling,. Sensuous yet senseless;. Feel my spine crumbling,. As I fall into my chair. 8212;&#8...

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Torstai 13. elokuuta 2015. Hulluna villiyrtteihin: Nokkoskeitto (gluteeniton). Kirjoittelin kesäkuussa jo villiyrteistä, ja reseptissä oli raaka-aineena. Nyt respetisarjassa on vuorossa nokkonen. Käynnissä oleva villiyrttibuumi on mielestäni todella tervetullut, sillä on huikeaa,. Että metsissä on tarjolla valtavasti syötävää, ja usein kyseessä ovat juuri sellaiset kasvit,. Joita emme ole aikoihin ruokapöytäämme huolineet, kuten voikukat, vuohenputket,. Sekä helppoudellaan että maullaan. 1 dl gluteeniton...

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