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लिखो यहां वहां: July 2013

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लिखो यहां वहां. सामाजिक, साहित्यिक और सांस्कृतिक हलचलों के साथ. Tuesday, July 23, 2013. डॉ. शोभा राम शर्मा. अब तुम्हारे ये बूढ़े माँ-बाप भूखे मरते हैं, बताओ, तुम्हारा क्या कर्तव्य है? आपके रहते यह कैसा अन्धेर है कि हमें चुपचाप निगल लिया जाता है। कोई एक बूँद भी आँसू नहीं बहाता।’. आपके पेट में दर्द है कि आपके अपने ही आपके पेट में चले गए- यह मोह कैसा? जहाँ से आए थे वहीं चले गए तो यह कष्ट कैसा? एक भूखे अजगर ने कहा- ‘हे दादाओं के दादा! क्या तुम वहीं नहीं हो? साधु ने कहा- ‘ह&#2366...लेकिन संय...बूढ&#2364...

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लिखो यहां वहां: April 2015

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लिखो यहां वहां. सामाजिक, साहित्यिक और सांस्कृतिक हलचलों के साथ. Tuesday, April 7, 2015. सिंगिंग बेल. प्रिय विजय,. तुम्हारा, सुभाष पंत. पहल की दूसरी पारी में प्रकाशित हुई उनकी एक ऐसी ही कहानी है। इस कहानी की विशेषता यह भी है कि यह मंचन की संभावनाओं से युक्‍त है।. वि.गौ. सुभाष पंत. और बफऱ् पड़ने का कोर्इ आसार नहीं।. यह वक्त की बात है। तब चर्च ने उससे रियायत चाही थी. उसने मीठी फटकार लगार्इ।. कोट कहाँ गया? अपराधबोध से हुकम की गर्दन झुक गर्इ।. वे बूढ़े हैं न! अच्छा, अच्छा, ज्य&#...अपने बाप क&#237...घड़...

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लिखो यहां वहां: June 2015

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लिखो यहां वहां. सामाजिक, साहित्यिक और सांस्कृतिक हलचलों के साथ. Thursday, June 25, 2015. प्रेम, प्रकृति और मिथक का अनूठा संसार. हमारे द्वारा पुकारे जाने वाले नाम प्रीति. को स्‍वीकारते हुए भी हमारी साथी प्रमोद कुमारी. ने अब प्रमोद के अहमदपुर. की समीक्षा. प्रीति द्वारा की. गयी है. 2404; रचनात्‍मक सहयोग के लिए प्रीति का आभार ।. वि गौ. प्रमोद के अहमदपुर. दर परत दर्ज है. जब व्हेल पलायन करते हैं।'. मानवता का खून बहने लगता है।. जब व्हेल पलायन करते हैं. मूल लेखक. यूरी रित्ख्यू. अनुवाद :. विजय गौड़. लोकप&#23...

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लिखो यहां वहां: June 2013

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लिखो यहां वहां. सामाजिक, साहित्यिक और सांस्कृतिक हलचलों के साथ. Wednesday, June 19, 2013. ताइवान : प्रतिरोध की कविता. प्रस्तुति. यादवेन्द्र. रेल की पटरी पर सोना. यह एक द्वीप है जिसपर लोगबाग़. लगातार ट्रेन में चढ़े रहते हैं. जब से उन्होंने कदम रखा धरती पर।. उनके जीवन का इकलौता ध्येय है. कि आगे बढ़ते रहें रेलवे के साथ साथ. उनकी जेबों में रेल का टिकट भी पड़ा रहता है. पर अफ़सोस,रेल से बाहर की दुनिया. उन्होंने देखी नहीं कभी . ट्रेन से नीचे कदम बिलकुल मत रखना. प्रस्तुतकर्ता. विजय गौड़. प्रतिरोध. पहाड&#236...

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लिखो यहां वहां: August 2013

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लिखो यहां वहां. सामाजिक, साहित्यिक और सांस्कृतिक हलचलों के साथ. Wednesday, August 21, 2013. फाउंडर्स ऑप मॉडर्न एडमिनिस्ट्रेशन इन उत्तराखंड: 1815—1884. उत्तराखंड के शोधार्थियों के लिए जरूरी किताब. डॉ. शोभा राम शर्मा. फाउंडर्स ऑप मॉडर्न एडमिनिस्ट्रेशन इन उत्तराखंड:1815—1884. लेखक: आरएस टोलिया. प्रकाशक : बिशन सिंह महेंद्रपाल सिंह,देहरादून. मूल्य: 1250 रुपये, पृष्ठ : 408. प्रस्तुतकर्ता. विजय गौड़. इस संदेश के लिए लिंक. लेबल: डॉ. शोभा राम शर्मा. पुस्तक समीक्षा. Friday, August 9, 2013. Subscribe to: Posts (Atom).

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कबाड़खाना: February 2015

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Saturday, February 28, 2015. ऐसे बादल तो फिर भी आएँगे, ऐसी बरसात फिर नहीं होगी. उस्ताद नुसरत फ़तेह अली ख़ान की एक और कम्पोजीशन प्रस्तुत कर रहा हूँ -. Labels: उस्ताद नुसरत फ़तेह अली ख़ान. मेरे महबूब के घर रंग है री. होली आ रही है. आज से आपको चुन चुन कर संगीत के नगीने सुनाये जाएंगे. शुरुआत करते हैं बाबा नुसरत से -. Labels: उस्ताद नुसरत फ़तेह अली ख़ान. रेलवे का तकिया मोटा करो. प्रोफ़ेसर रवि पाण्डे अपनी तीसरी पीढ़ी के साथ. रेल बजट से मेरी मांग. रवि पाण्डे. रवि पाण्डे. पीढ़ियाँ. एक नई पीढ़ी है. चकमक से आग. अद&#23...

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कबाड़खाना: January 2015

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Saturday, January 31, 2015. आपका व्याकरण उनकी समझ की औक़ात से बाहर था, लक्ष्मण! संजय चतुर्वेदी. बातचीत में ही. संजय चतुर्वेदी. संजय जी को धन्यवाद. उनका लिखा पेश है -. अब आप मुक्तिदाता राम के पास हैं. वैसे भी मतान्तर और सहज विनोद के प्रति द्वेष और हिंसा से भरी यह दुनिया आपके अनुकूल नहीं रह गई थी. आपने आज़ाद हिन्दुस्तान की सबसे सच्ची. उठा-पटक को नापना बड़ा मुश्किल काम था. मुस्तनद बनाता है. उसकी दुआ आप तक पंहुच रही होगी. Labels: आर. के. लक्ष्मण. संजय चतुर्वेदी. लेकिन राजशाही क&...तीन साल क&#2368...आप क&#236...

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काव्य-प्रसंग: July 2011

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रविवार, जुलाई 24, 2011. राजेश रेड्डी की ग़ज़लें. शाम को जिस वक्त खाली हाथ घर जाता हूँ मैं. मुस्कुरा देते हैं बच्चे और मर जाता हूँ मैं. जानता हूँ रेत पर वो चिलचिलाती धूप है. जाने किस उम्मीद में फिर भी उधर जाता हूँ मैं. सारी दुनिया से अकेले जूझ लेता हूँ कभी. और कभी अपने ही साये से भी डर जाता हूँ मैं. ज़िन्दगी जब मुझसे मजबूती की रखती है उमीद. फैसले की उस घड़ी में क्यूँ बिखर जाता हूँ मैं. होना है मेरा क़त्ल ये मालूम है मुझे. मेरी ज़िंदगी के मआनी बदल दे. खु़दा! प्रस्तुतकर्ता. 1 टिप्पणी:. दृश्य: एक. जो क...

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हलंत: February 2011

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Saturday, 19 February 2011. सन्नाटे में बेरंग तस्वीरें. पुराना पड़ रहा हूँ नए पानी के साथ. खाली बोतल उदासी का सबब है और आधी खाली हुई बोतल के बाकी हिस्से में उदासी छुटी रह जाती है…. गाय का गला या घर की दीवार, मेरे भीतर अनगिनत ध्वनियाँ हैं. रीत गया कुछ अभी बीता नही. तस्वीरों में रह गए लोग. होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मेरे आगे…. प्रस्तुतकर्ता. इस पोस्ट से संबंधित लिंक. लेबल फ़ोटोग्राफी. Tuesday, 15 February 2011. यूँही निर्मल वर्मा - 1. स्मृतियों से भी. पिक्चर-पोस्टकार्ड. का प्रोग्राम. जैसे एक झ&#2368...क्ष...

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सिताब दियारा : November 2013

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सिताब दियारा. शुक्रवार, 29 नवंबर 2013. अनुराग सिंह 'ऋषि' की गजलें. अनुराग सिंह 'ऋषि'. लेखन के क्षेत्र में युवा अनुराग सिंह ‘ऋषि’ के ये आरंभिक कदम हैं ऐसे प्रत्येक संभावनाशील आरंभिक कदम का सिताब दियारा ब्लॉग स्वागत करता है . प्रस्तुत है युवा रचनाकार अनुराग सिंह ‘ऋषि’ की गजलें. एक गलतियाँ. इंसान को इंसान बनाती हैं गलतियाँ. अनुभव के साथ ज्ञान भी लाती हैं गलतियाँ. आखिर कमी कहाँ थी क्या बात रह गई. हर राह पे चलने के कुछ अपने कायदे हैं. 8220; ऋषि. दो . ज़िक्र. उसकी तारीफ़ मे. गजल क्या लिखे. पर सभी के ...कमतर&#236...

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असुविधा....: सुजाता की नौ कविताएँ

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असुविधा. समकालीन कविता की देहरी. अभी हाल में. विजेट आपके ब्लॉग पर. शुक्रवार, 5 दिसंबर 2014. सुजाता की नौ कविताएँ. दिल्ली विश्विद्यालय के श्यामलाल कालेज में पढ़ा रही सुजाता ब्लॉग जगत में अपने चोखेरबाली. तुम्हे चाहिए एक औसत औरत. न कम न ज़्यादा. नमक की तरह ।. उसके ज़बान हो. उसके दिल भी हो. उसके सपने भी हो. उसके मत भी हों. मतभेद भी. उसके दिमाग हो ।. उसके भावनाएँ भी हों. और आँसू भी ।. ताकि वह पढे तुम्हे और सराहे. वह बहस कर सके तुमसे और. तुम शह-मात कर दो. ताकि समझा सको उसे. ताकि वह रो सके. मैं थी. अब भी गढ&...

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सोची-समझी: December 2011

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सोची-समझी. Friday, 30 December 2011. जाना एक साल का : फ़ेसबुक पर मेरे पहले साल को जैसा मैंने देखा-समझा. कल एक और साल अतीत से जुड़ जाएगा. कई अर्थों में अच्छा व अन्य कई अर्थों में बहुत बुरा साल रहा है यह. निजी तौर पर यह मिला-जुला-सा रहा है. मुझे फेसबुक से जुड़े भी कल एक साल पूरा हो जाएगा. कैसा रहा? मोहन श्रोत्रिय. Wednesday, 28 December 2011. ताकि सनद रहे और बखत-ज़रूरत काम आए. बुद्धिजीवियों के नाम. एक-एक पंक्ति के संदेशनुमा. स्टेटसों की. वन-लाइनर्ज़ की बन आई है. समझ नहीं आता. लगभग वैसे ही. इस मध्य वर...

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दयार: चिट्टा मुकुट

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Friday, August 14, 2015. चिट्टा मुकुट. मुदित सेठी. दा चारकोल कनै पेंसला नै बणाह्या इक स्‍केच कनै इक अंग्रेजी कविता।. कविता दा पहाड़ी कनै हिंदी अनुवाद तेज सेठी. जाई नै दूर बद्दळां तैं उप्पर. खड़ोत्तीयो उच्ची पक्की भगत*. इक्क चट्टान दूह्री. बैंगणी सलेट्टी भूरी. लपो:ह्यीयो वर्फा नै चुफीर्दीया. झाक्का करदी झरोखुये जे:ह ते. धूरीया दे जम्मेयो चोळे विच्चे ते. वाह भई क:देह्या छैळ. हया चिट्टा मुकुट. भगत : ठिण्ड या बट्टण्क (बटण्क) बटंक. स्थित है ऊंची सशक्त दृढ़-तत्पर. मुड़ी हुई. कितना सुन्दर. Friday, August 14, 2015.

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हलंत: May 2009

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Wednesday, 27 May 2009. दीवार के उस पार. सँझा की बेला थी कल. कोई यूँ आ खडा हुआ देहरी पर. कि झट तुम्हारी याद से भीग गया मैं. विलंबित होता है तो खुद ही चला आता है. तुम्हारे बारे में सोचना और. कितना अप्रत्याशित होता है तुम्हें याद करना. मसलन पार्क की बेंच पर बैठे. गली के जवान होते बच्चे. मुझे देख अचकचाकर छुड़ा लेते हैं. एक दूसरे से हाथ. मुझे ध्यान हो आते हैं बीतते साल. और इन सालों में तुम्हारी अनुपस्थिति. छाती का उठना-गिरना और हम पाते हैं. प्रस्तुतकर्ता. लेबल कविता-अकविता. Wednesday, 13 May 2009. दाग&#...

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लिखो यहां वहां. सामाजिक, साहित्यिक और सांस्कृतिक हलचलों के साथ. Sunday, March 25, 2018. पानी के खेल. पानी है तो मचलेगा. हाथ छुड़ा कर भागेगा. हंसते हंसते थक जायेगा. रो जायेगा. सो जायेगा. जागेगा तो उछलेगा. पानी है तो फूटेगा।. मुख्यमंत्री. ये मुख्यमंत्री हंसता हुआ सा है. खबरों में यह छाया हुआ सा है. लार मुँह में भरा हुआ सा है. कौन मानेगा यह नया सा है।. इत्ता सा मंत्री. पुलिसजनों तुम खिलौनों की तरह लगते हो. इत्ते से मंत्री की चौकसी में. जैसे उसका घर कोई किला है. और खरगोश की तरह धड़कता है. विजय गौड़. का आभ...

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