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विकल्प: June 2013
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सामाजिक सांस्कृतिक चेतना और संवाद का मंच. Thursday, June 27, 2013. व्लादिमीर मायकोवस्की की कविता- तुम. तुम, जो व्याभिचार के कीचड़ में लगातार लोट रहे हो,. गरम गुसलखाने और आरामदायक शौचालय के मालिक! तुम्हारी मजाल कि अपनी चुन्धियायी आँखों से पढ़ो. अखबार में छपी सेंट जोर्ज पदक दिये जाने जैसी खबर! तुमको परवाह भी है, उन बेशुमार मामूली लोगों की. कि शायद अभी-अभी लेफ्टिनेंट पेत्रोव की दोनों टांगें. उड़ गयीं हैं बम के धमाके से? अनुवाद- दिगम्बर). Links to this post. Labels: कविता. मायकोवस्की. Friday, June 21, 2013.
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सुर-पेटी: 8/1/10
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सुर-पेटी. कानों में क्या पड़ गई नग़्मे की चार बूँद.आँखों के ख़ार कितने बहकर निकल गए. Sunday, August 8, 2010. मोरा अंग अंग रंगा क्यों रसिया-पीनाज़ मसानी. संजय पटेल. पीनाज़ मसानी. सुगम संगीत. Subscribe to: Posts (Atom). भले पधारो! सुरीली बिछात पर स्वागत है! सुर पेटी का मशालची. मोरा अंग अंग रंगा क्यों रसिया-पीनाज़ मसानी. मनचाहे शब्द-स्वर. कबाड़खाना. गीतों की महफिल. रेडियो वाणी. रेडियोनामा. मोहल्ला. जोग लिखी संजय पटेल की. किस से कहें? श्रोता बिरादरी. Picture Window template. Powered by Blogger.
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संजय व्यास: April 2013
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Wednesday, April 3, 2013. प्रासाद. अब ये इमारत उसके ठीक सामने थी. Subscribe to: Posts (Atom). प्रिय पते. कबाड़खाना. ज़ुल्फ़ बिखरा के निकले वो घर से. बेकल उत्साही को श्रद्धांजलि. उनकी इसी ग़ज़ल से पहले पहल उनसे तार्रुफ़ हुआ था. आवाज़ अहमद हुसैन-मुहम्मद हुसैन की -. सिद्धार्थ. Links for 2016-12-01 [del.icio.us]. Sponsored: 64% off Code Black Drone with HD Camera Our #1 Best-Selling Drone- Meet the Dark Night of the Sky! प्रतिभा की दुनिया . न दैन्यं न पलायनम्. लिली पाण्डेय. Hathkadh । हथकढ़. लगभग एक महीन...
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काव्य-प्रसंग: July 2011
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रविवार, जुलाई 24, 2011. राजेश रेड्डी की ग़ज़लें. शाम को जिस वक्त खाली हाथ घर जाता हूँ मैं. मुस्कुरा देते हैं बच्चे और मर जाता हूँ मैं. जानता हूँ रेत पर वो चिलचिलाती धूप है. जाने किस उम्मीद में फिर भी उधर जाता हूँ मैं. सारी दुनिया से अकेले जूझ लेता हूँ कभी. और कभी अपने ही साये से भी डर जाता हूँ मैं. ज़िन्दगी जब मुझसे मजबूती की रखती है उमीद. फैसले की उस घड़ी में क्यूँ बिखर जाता हूँ मैं. होना है मेरा क़त्ल ये मालूम है मुझे. मेरी ज़िंदगी के मआनी बदल दे. खु़दा! प्रस्तुतकर्ता. 1 टिप्पणी:. दृश्य: एक. जो क...
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मंतव्य: April 2012
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हर बात पे कहते हो तुम के तू क्या है. तुम्ही कहो की अंदाज-ए-गुफ्तगू क्या है. Powered by Blogger. खुशबू मिटटी की . सच में अमर बेल की तरह बढ़ते इन सीमेंट के शहरों ने हमसे कितना कुछ छीन लिया है. शीर्षक समाज. 0 संदेश. कैसा लगा. आप पधारे. फेसबुक का ठिकाना. Kamal K. Jain. समय का पहिया चलता है. हम मिले. तेरे द्वारे. खुशबू जुदा जुदा. कारवां बनता गया. जाने. कब क्या कहा. खुशबू मिटटी की . फेस बुक पर भी मिले. अपने जैसे ही कुछ और. सवेरा होने तक. PRATILIPI / प्रतिलिपि. A Patron Saint for Broken Homes: Shahrukh Alam.
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मंतव्य: April 2013
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हर बात पे कहते हो तुम के तू क्या है. तुम्ही कहो की अंदाज-ए-गुफ्तगू क्या है. Powered by Blogger. सुना है. सुना है. अब भी उन सपनो की कथा सुनाती है,. अब भी आनासागर के किनारे प्यार की कसमे खायी जाती है,. दरगाह जाते हुए. मदार गेट पर अब भी किसी का यूँ ही इंतज़ार होता है,. बस स्टेंड की पार्किंग अब भी उसकी एक्टिवा से गुलज़ार है,. उसकी कमर अब भी पुष्कर की घाटियों सी बल खाती है,. माया मंदिर में आज भी उसका इंतज़ार होता है,. सुना है. सुना है. ख्वाजा साहब की दरगाह. मदार गेट. माया मंदिर. पुष्कर घाट. 0 संदेश. इन्...
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हलंत: February 2011
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Saturday, 19 February 2011. सन्नाटे में बेरंग तस्वीरें. पुराना पड़ रहा हूँ नए पानी के साथ. खाली बोतल उदासी का सबब है और आधी खाली हुई बोतल के बाकी हिस्से में उदासी छुटी रह जाती है…. गाय का गला या घर की दीवार, मेरे भीतर अनगिनत ध्वनियाँ हैं. रीत गया कुछ अभी बीता नही. तस्वीरों में रह गए लोग. होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मेरे आगे…. प्रस्तुतकर्ता. इस पोस्ट से संबंधित लिंक. लेबल फ़ोटोग्राफी. Tuesday, 15 February 2011. यूँही निर्मल वर्मा - 1. स्मृतियों से भी. पिक्चर-पोस्टकार्ड. का प्रोग्राम. जैसे एक झी...क्ष...
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बेबाक: February 2008
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अपनी तो आदत है. या तो कहो नहीं, कहो तो बेबाक कहो. मंगलवार, 5 फ़रवरी 2008. क्यों नहीं खेलेगी सानिया? मृत्युंजय कुमार. 2 टिप्पणियां:. प्रतिक्रिया. नई पोस्ट. पुराने पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. सदस्यता लें संदेश (Atom). टिक.टिक.टिक. मेरे बारे में. मृत्युंजय कुमार. मेरा पूरा प्रोफ़ाइल देखें. आपने कहा. अंग्रेजी लिखें हिन्दी पायें. ब्लॉग आर्काइव. क्यों नहीं खेलेगी सानिया? इस राह पे. यह िरजेक्टेड माल हैं. हिंदी में मदद चाहिए तो यहां जाइए. मुखर प्रतिरोध. आवाज़ की दुनिया. चिट्ठाजगत.
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मेरी डायरी के कुछ फटे हुए पन्ने...: October 2009
http://cyber-chakallas.blogspot.com/2009_10_01_archive.html
मेरी डायरी के कुछ फटे हुए पन्ने. Wednesday, October 28, 2009. अब उसका सपना किस हद तक पूरा हुआ,इसके बारे में हम फिर कभी विस्तार से बातें करेंगे. अब आपका सोचना लाजिमी है कि आज मैं किसी के सपने के बारे में बात क्यों कर रहा हूँ? अगर सपना एक हो,स्थिर हो तो उसे पूरी करने की जिजीविषा ही हमें उसके करीब तक पहुंचाती है. 29अक्टूबर को i-next में प्रकाशित http:/ www.inext.co.in/epaper/Default.aspx? Posted by अभिषेक. Friday, October 9, 2009. Http:/ www.inext.co.in/epaper/Default.aspx? Posted by अभिषेक.
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लपूझन्ना: February 2013
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लपूझन्ना. Wednesday, February 27, 2013. स्टेट बैंक ऑफ धकियाचमन. 8220;अबे ह्वां से खड़ा होके टौंचा लगा बे मिद्दू के .”. 8220;मने ये तो बम्बाघेर से लौट कर आए हैं ससुरे टुन्ना की ससुराल से .”. 8220;अबे हरामी! ये कहाँ से चाऊ किया बे? 8221; लालसिंह अभी अभी घटी पराजय को जैसे सेकेण्ड भर में भूल गया और नोट को उलट पुलट कर देखने लगा. यानी पंद्रह रुपए! 8220;बला हलामी बनता ऐ थाला! रुआंसे मुन्ना के बड़े भाई की हैसियत से फुचî...लपूझन्ना. Labels: ढकियाचमन. मुन्ना खुड्डी. Subscribe to: Posts (Atom). इस पूर...
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