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संजय व्यास: April 2013
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Wednesday, April 3, 2013. प्रासाद. अब ये इमारत उसके ठीक सामने थी. Subscribe to: Posts (Atom). प्रिय पते. कबाड़खाना. ज़ुल्फ़ बिखरा के निकले वो घर से. बेकल उत्साही को श्रद्धांजलि. उनकी इसी ग़ज़ल से पहले पहल उनसे तार्रुफ़ हुआ था. आवाज़ अहमद हुसैन-मुहम्मद हुसैन की -. सिद्धार्थ. Links for 2016-12-01 [del.icio.us]. Sponsored: 64% off Code Black Drone with HD Camera Our #1 Best-Selling Drone- Meet the Dark Night of the Sky! प्रतिभा की दुनिया . न दैन्यं न पलायनम्. लिली पाण्डेय. Hathkadh । हथकढ़. लगभग एक महीन...
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मेरी डायरी के कुछ फटे हुए पन्ने...: October 2009
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मेरी डायरी के कुछ फटे हुए पन्ने. Wednesday, October 28, 2009. अब उसका सपना किस हद तक पूरा हुआ,इसके बारे में हम फिर कभी विस्तार से बातें करेंगे. अब आपका सोचना लाजिमी है कि आज मैं किसी के सपने के बारे में बात क्यों कर रहा हूँ? अगर सपना एक हो,स्थिर हो तो उसे पूरी करने की जिजीविषा ही हमें उसके करीब तक पहुंचाती है. 29अक्टूबर को i-next में प्रकाशित http:/ www.inext.co.in/epaper/Default.aspx? Posted by अभिषेक. Friday, October 9, 2009. Http:/ www.inext.co.in/epaper/Default.aspx? Posted by अभिषेक.
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पढ़ते-पढ़ते: September 2012
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Friday, September 28, 2012. डान पगिस : बातचीत. इजरायली कवि डान पगिस की एक और कविता. बातचीत : डान पगिस. अनुवाद : मनोज पटेल). Posted by मनोज पटेल. Labels: डान पगिस. Wednesday, September 26, 2012. अफ़ज़ाल अहमद सैयद : कौन क्या देखना चाहता है. रोकोको और दूसरी दुनियाएं' संग्रह से अफ़ज़ाल अहमद सैयद की एक और कविता. कौन क्या देखना चाहता है : अफ़ज़ाल अहमद सैयद. लिप्यंतरण : मनोज पटेल). वेंडी डी. हशरात के खिलाफ हमारी जंग. उनकी खुशकिस्मती से. इस बार गर्मियों में. जाने का मंसूबा. तर्क कर चली हैं. आरिज़...मुस...
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कर्मनाशा: चाभियों की तरह गुम हो जाते है वादे : रीता पेत्रो की कवितायें
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शनिवार, 23 मार्च 2013. चाभियों की तरह गुम हो जाते है वादे : रीता पेत्रो की कवितायें. रीता पेत्रो की पाँच कवितायें. अनुवाद : सिद्धेश्वर सिंह). ०१- तुम्हारे बिना. इस घर में. जो है खाली और जमाव की हद तक ठंडा. मुझे देती है गर्माहट. केवल तुम्हारी जैकेट।. ०२- मत चाहो प्रतिज्ञायें. मुझसे मत चाहो प्रतिज्ञायें. चाभियों की तरह गुम हो जाते है वादे. मुझसे मत चाहो सतत प्रेम. पास ही दुबकी पड़ी हैं. अनंतता और मत्यु की छायायें. मत चाहो कि मैं कहूँ अनकहे शब्द. चाहो तो बस इतना. हमने पी कॉफ़ी. ०५- पूर्णत्व. कवितì...
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अनकही बातें: July 2011
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अनकही बातें. Friday, July 22, 2011. ऐ मुसाफिर. क्यूँ जारी है ख़ुशी की तलाश. मायूस है तेरे सपनों की रात. ऐ मुसाफिर. पन्ने तो पलट. देख वो स्याही भी सूख गई. ढलती रही जिसमें ज़िन्दगी तेरी. तेरी इक कोशिश से बन जायेंगे. खुदबखुद असबाग. तो क्यूँ न तू नयी कहानी लिख. मैं मजबूर हूँ.मौसम की. मुझपर मेरा ही बस नहीं. तेरे अरमानों ने ही ज़िंदा रखा है मुझे. उसका कोई अक्स औ लिबास नहीं. उसे खोजने में तू हर ख़ुशी खो देगा,. मैं एक रोज़, तुमसे मिलने आऊँगी. मुसाफिर. लेकिन इंतजार न. वादा रहा,. जाऊँगी. Friday, July 22, 2011.
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संजय व्यास: October 2014
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Friday, October 17, 2014. यद्यपि वो उम्र के लिहाज़ से बच्चा नहीं था. Subscribe to: Posts (Atom). प्रिय पते. कबाड़खाना. ज़ुल्फ़ बिखरा के निकले वो घर से. बेकल उत्साही को श्रद्धांजलि. उनकी इसी ग़ज़ल से पहले पहल उनसे तार्रुफ़ हुआ था. आवाज़ अहमद हुसैन-मुहम्मद हुसैन की -. सिद्धार्थ. Links for 2016-12-01 [del.icio.us]. Sponsored: 64% off Code Black Drone with HD Camera Our #1 Best-Selling Drone- Meet the Dark Night of the Sky! प्रतिभा की दुनिया . न दैन्यं न पलायनम्. लिली पाण्डेय. Hathkadh । हथकढ़. लगभग एक महीन&#...
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मौन में बात...: July 2012
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मौन में बात. Wwwmanavaranya.blogspot.com (मेरी कविताएं) www.manavplays.blogspot.com (मेरे नाटक). Saturday, July 28, 2012. त्रासदी. कहानी का भाग तीन. "रोशनी.". 8217; ’मुझे अच्छा लग रहा था. आपने क्या सपना देखा? सपना ठीक-ठीक किसके बारे में था. क्या देखा? 8217; ’हाँ.।’ ’अजीब है. मैं तुम्हारे सपने में था! 8217; ’कहा था ना काफी समय से. ठीक-ठीक याद नहीं।’ ’क्या करती हो तुम? 8217; ’यह क्या सवाल है? 8217; ’तुम यह सवाल मुझसे क्यों पूछ रही हो? बहुत चिड़े पड़े हो! 8217; ’सच कहना चाह राहा...8217; ’नही...
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असुविधा....: सुजाता की नौ कविताएँ
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असुविधा. समकालीन कविता की देहरी. अभी हाल में. विजेट आपके ब्लॉग पर. शुक्रवार, 5 दिसंबर 2014. सुजाता की नौ कविताएँ. दिल्ली विश्विद्यालय के श्यामलाल कालेज में पढ़ा रही सुजाता ब्लॉग जगत में अपने चोखेरबाली. तुम्हे चाहिए एक औसत औरत. न कम न ज़्यादा. नमक की तरह ।. उसके ज़बान हो. उसके दिल भी हो. उसके सपने भी हो. उसके मत भी हों. मतभेद भी. उसके दिमाग हो ।. उसके भावनाएँ भी हों. और आँसू भी ।. ताकि वह पढे तुम्हे और सराहे. वह बहस कर सके तुमसे और. तुम शह-मात कर दो. ताकि समझा सको उसे. ताकि वह रो सके. मैं थी. अब भी गढ&...
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उसने कहा था...: August 2012
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उसने कहा था. Tuesday, August 14, 2012. मैं क्यों लिखता हूं. पोलिश कवि तादयुस्ज रोज़विच. की कविता. बिल जॉन्सन के. अंग्रेज़ी अनुवाद के आधार पर हिन्दी में अनुवाद उदय प्रकाश का. साथ में पिकासो की कलाकृति 'बस्ट ऑफ ए मैन राइटिंग'.). कभी-कभी 'जीवन' उसे छिपाता है. जो जीवन से ज़्यादा बड़ा है. कभी-कभी पहाड़ उस सबको छुपाते हैं. जो पहाड़ों के पार है. इसीलिए पहाड़ों को खिसकाया जाना चाहिए. लेकिन पहाड़ों को खिसकाने लायक. न तो मेरे पास तकनीकी साधन हैं. न भरोसा. और यही वजह है कि. Posted by Madhavi Sharma Guleri. TVs and ...