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सोची-समझी: December 2011
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सोची-समझी. Friday, 30 December 2011. जाना एक साल का : फ़ेसबुक पर मेरे पहले साल को जैसा मैंने देखा-समझा. कल एक और साल अतीत से जुड़ जाएगा. कई अर्थों में अच्छा व अन्य कई अर्थों में बहुत बुरा साल रहा है यह. निजी तौर पर यह मिला-जुला-सा रहा है. मुझे फेसबुक से जुड़े भी कल एक साल पूरा हो जाएगा. कैसा रहा? मोहन श्रोत्रिय. Wednesday, 28 December 2011. ताकि सनद रहे और बखत-ज़रूरत काम आए. बुद्धिजीवियों के नाम. एक-एक पंक्ति के संदेशनुमा. स्टेटसों की. वन-लाइनर्ज़ की बन आई है. समझ नहीं आता. लगभग वैसे ही. इस मध्य वर...
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उड़ान ( एक छोटी सी कोशिश ): June 2012
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उड़ान ( एक छोटी सी कोशिश ). Monday, June 4, 2012. कभी भीड़ से. कभी अकेले से. कभी धुंधले से. कभी दूर से. कभी करीब से. कभी अजनबी से. कभी अपने से. मिलते,बिछड़ते चेहरे. आँखों से ओझल हुए. बहुत चेहरे. कुछ अपने से ! शोभा ). Labels: कविता. तुम प्राणवायु हो. शीतल छाया हो. लाल फूलों से सजे. तुम बहुत लुभावने हो. और 'मैं'. मर्यादा से बंधी. वो पवित्र धागा हूँ. जो किस्तों में कई बार बाँधी जाती हूँ. कभी बरगद,कभी पीपल के तने से. मैं बंधी हूँ. परम्पराओं की मजबूत डोर से. मैं एक अनजाने. पर छा जाती. तुम संग. अस्ति...
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उड़ान ( एक छोटी सी कोशिश ): September 2012
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उड़ान ( एक छोटी सी कोशिश ). Sunday, September 30, 2012. कृतिम' 'चाँद'. तुम्हारा दावा है. सात फेरों वाली. तुम्हारी कविता. तुम्हारी सात बेड़ियों में. सुरक्षित है. सात परतों में उसे छिपा. तुम सराहते हो उन्हें. जो तुम्हारी नज़रों में. निरंकुश' कविता है. सराही जाती है तुम्हारी. दोहरे मानसिकता वाली कविता. कृतिम' 'चाँद' के रूप में ! Labels: कविता. Friday, September 28, 2012. बात कुछ भी नहीं थी. बात कुछ भी नहीं थी. आस-पास का माहौल. कुछ ठीक नहीं था. कुछ बिखरा हुआ था. झलक सी दिखाई दी. चुप ही रहे. फिर भी. बिन&...
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सोची-समझी: October 2013
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सोची-समझी. Monday, 28 October 2013. रिश्ते, नेहरू और पटेल के. या अपने आप को बहुत होशियार,अक्लमंद? या दूसरों को बेवक़ूफ़? अज़हर खान. मोहन श्रोत्रिय. Subscribe to: Posts (Atom). यह हूं मैं. मोहन श्रोत्रिय. जयपुर, राजस्थान, India. View my complete profile. सोचने समझने वाले. पुरानी पोस्टों से. लीना मल्होत्रा राव की तीन ताज़ा कविताएं. उर्दू भारतीय उपमहाद्वीप की बहुत पसंद की जाने वाली ज़ुबानो...शेक्सपीयर और आज का समय. शेक्सपीयर के नाटक Timon Of Athens की ये बह&#...हरीश करमचंदाणी ...मेरे प...बाब...
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सोची-समझी: March 2012
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सोची-समझी. Friday, 30 March 2012. मेरे साथ यह कैसे हो गया! 8234;I never wallowed in this thought. I have seen several genuinely nice people suffer much more and my illness looked insignificant in comparison. Their stories of handling grief and getting life back to normal gave me tremendous strength and courage to face my little situation positively and with a smile. Your prayers and good wishes strengthened me and my family and I remain forever indebted to you.. 8234;1. Never give up:. टीका...पान...
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सोची-समझी: September 2012
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सोची-समझी. Thursday, 13 September 2012. सबसे ख़तरनाक (पाश). खालिस्तानी उग्रवादियों के खि़लाफ़ खम ठोक कर खड़े होने वाले, और उन्हीं की गोलियों का निशाना. बने इस परम देशभक्त, बड़े कवि के बारे में इस पार्टी व इसके नेताओं की यह समझ साहित्य-संस्कृति के लिए कितनी ख़तरनाक साबित हो सकती है! पाश की कविता. सबसे ख़तरनाक. श्रम की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होती. पुलिस की मार सबसे ख़तरनाक नहीं होती. बैठे-बिठाए पकड़े जाना - बुरा तो है. पर सबसे ख़तरनाक नहीं होता. कपट के शोर में. घर से निकलना काम पर. लेकिन तुम&#...डरे ह...
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सोची-समझी: February 2012
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सोची-समझी. Wednesday, 22 February 2012. सरोज कुमार की सात कविताएं. बुद्ध को नाचीज़ मुर्दे ने. वह कह दिया,. जो संभव नहीं होता. धर्माचार्यों की पीढ़ियों से! रेलिंग पकड़कर नहीं उतरती. और न सीढ़ियों से.". डिग्री को. तलवार की तरह घुमाते हुए. वह संग्राम में उतरा. वह काठ की सिद्ध हुई! डिग्री को. नाव की तरह खेते हुए. वह नदी में उतरा. वह काग़ज़ की सिद्ध हुई! डिग्री को. चेक की तरह संभाले हुए. वह बैंक पहुंचा. वह हास्यास्पद सिद्ध हुई! उसी दीवार पर उसने लटका दिया,. जिस पर शेर का मुंह. 3 सेनापति. बोली :. ये ब...
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सोची-समझी: September 2011
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सोची-समझी. Thursday, 29 September 2011. सुनो, भगत सिंह, सुनो! मैंने कहा था. कुछ नहीं है इस समय ऐसा. जो तुम्हें ख़ुशी दे सके. मुझे. और बहुत कुछ बता देना चाहिए था. तभी एक सांस में , बिना रुके. यानी वह सब जो तुम्हारे पीछे से. हुआ है इस देश में. यह देश. बदल देना चाहते थे तुम. जिसकी तकदीर, जिसका मुस्तक़बिल. लिख देना चाहते थे अपने नए अंदाज़ में,. सच कहूं यह देश तुम्हारे लायक था ही नहीं. क्यों आखि़र? सिर्फ़ इतना ही काफ़ी है. वे मन से चाहते ही. अपनाया था तुमने जिसे. वह सम्मान पा जाए. चुम्बक का,. शुरू...तुम...
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उड़ान ( एक छोटी सी कोशिश ): December 2012
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उड़ान ( एक छोटी सी कोशिश ). Friday, December 28, 2012. दामिनी है. रोई नहीं थी. नहीं थी. बेबस नहीं थी. वो लड़ रही थी. दुस्साहसियों के साहस. पस्त कर रही थी. चीख नहीं. फ़रियाद नहीं. एक ललकार थी. अब सब जाग जाओ. पुकार थी. देह नहीं. दामिनी है. भीतर कुछ मरा. वहाँ जिन्दा है. कहीं गयी नहीं. जाने भी मत देना. उसे जिन्दा रखना. खुद से एक वादा करना . Labels: कविता. Monday, December 10, 2012. अनुभूति. Labels: अनुभूति. Thursday, December 6, 2012. अदृश्य है. किसी आँगन के पेड़ से. उस पेड़ के लिए. Labels: कविता. एक बे...
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