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सुरेश यादव सृजन

सुरेश यादव सृजन. मेरी चुनी हुई रचनायें. सोमवार, 16 दिसंबर 2013. मित्रो. गुलाबी. राज्यों. चुनावों. ज़िन्दगी. प्रतिक्रिया. प्रतीक्षा. अखबारों. तस्वीरों. आँखों. लकीरें. आँखों. सुलगाते. शब्दों. है इतनी. दिनों. गिराते. तानाशाह. ज़ंजीरों से. खूंटी. दीवारों. लोगों. आँखों. लोगों. साँसों. रिश्ते. तानाशाह लटक. गया फांसी. ज़ंजीरों. प्रस्तुतकर्ता. सुरेश यादव. 4 टिप्‍पणियां:. इस संदेश के लिए लिंक. लेबल: सुरेश यादव की कविताएं. पुराने पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. सदस्यता लें संदेश (Atom). रहेंगे।. सुरेश यादव. 5 वर्ष पहले. पहला...

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सुरेश यादव सृजन. मेरी चुनी हुई रचनायें. सोमवार, 16 दिसंबर 2013. मित्रो. गुलाबी. राज्यों. चुनावों. ज़िन्दगी. प्रतिक्रिया. प्रतीक्षा. अखबारों. तस्वीरों. आँखों. लकीरें. आँखों. सुलगाते. शब्दों. है इतनी. दिनों. गिराते. तानाशाह. ज़ंजीरों से. खूंटी. दीवारों. लोगों. आँखों. लोगों. साँसों. रिश्ते. तानाशाह लटक. गया फांसी. ज़ंजीरों. प्रस्तुतकर्ता. सुरेश यादव. 4 टिप्‍पणियां:. इस संदेश के लिए लिंक. लेबल: सुरेश यादव की कविताएं. पुराने पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. सदस्यता लें संदेश (Atom). रहेंगे।. सुरेश यादव. 5 वर्ष पहले. पहल&#2366...
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1 कविता
2 अपनी
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कविता,अपनी,ठण्ड,धीरे,गहराने,चुके,गर्मी,कहीं,मंथन,मस्ती,महगाई,जवानी,वस्तु,लेकिन,आदमी,वक्त,बहुत,सस्ती,तलाशती,कहने,साहस,आपकी,रहेगी,आपका,सुरेश,यादव,अख़बार,सुबह,लिपट,हादसे,जाते,डरावनी,कोने,अक्षर,नाखून,उभरते,ख़ींच,देते,गहरी,ठहरी,नहीं,पाता,दिया,रौशनी,अलाव,तलाशी
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सुरेश यादव सृजन | sureshyadavsrijan.blogspot.com Reviews

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सुरेश यादव सृजन. मेरी चुनी हुई रचनायें. सोमवार, 16 दिसंबर 2013. मित्रो. गुलाबी. राज्यों. चुनावों. ज़िन्दगी. प्रतिक्रिया. प्रतीक्षा. अखबारों. तस्वीरों. आँखों. लकीरें. आँखों. सुलगाते. शब्दों. है इतनी. दिनों. गिराते. तानाशाह. ज़ंजीरों से. खूंटी. दीवारों. लोगों. आँखों. लोगों. साँसों. रिश्ते. तानाशाह लटक. गया फांसी. ज़ंजीरों. प्रस्तुतकर्ता. सुरेश यादव. 4 टिप्‍पणियां:. इस संदेश के लिए लिंक. लेबल: सुरेश यादव की कविताएं. पुराने पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. सदस्यता लें संदेश (Atom). रहेंगे।. सुरेश यादव. 5 वर्ष पहले. पहल&#2366...

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सुरेश यादव सृजन: July 2010

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सुरेश यादव सृजन. मेरी चुनी हुई रचनायें. सोमवार, 19 जुलाई 2010. अपनी बात. सुरेश यादव. कवितायेँ. बचपन का सूरज. बचपन का सूरज. छोटा था. निकल कर तालाब से सुबह-सुबह. पेड़ पर टंग जाता था. खेत पर जाते हुए. टकटकी बाँधे - मैं. देखता रह जाता था. कभी-कभी तो. चलते-चलते रुक कर. खड़ा हो जाता था. बबूल के काँटों में. सूरज को उलझा कर. बैठता जब मेड़ पर. सूरज को फिर. पसरा छोड़ देता. सरसों के खेत पर. कज़री बाग में छिपते हुए सूरज को. फलांगते हुए कच्ची छतें. निकाल कर लाता था बाहर. और जी चाही देर खेल कर. बचपन का सूरज. सम्प&#2...

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सुरेश यादव सृजन: December 2012

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सुरेश यादव सृजन. मेरी चुनी हुई रचनायें. रविवार, 2 दिसंबर 2012. अपनी बात. मित्रो. लम्बे अंतराल के बाद आप के सामने अपनी नई पुरानी तीन कवितायेँ. लेकर फिर प्रस्तुत हूँ. आशा है. आप भूले नहीं होंगे. इस बीच कविताओं को. गोष्ठियों और कवि सम्मेलनों के माध्यम से अपने चाहने वालों तक पहुंचता. तो रहा हूँ परन्तु अपने इस ब्लॉग के व्यापक मित्र मंच से इन दिनों अवश्य. भागीदारी का आकांक्षी भी हूँ. सुरेश यादव. जीवन पानी का बुलबुला है. आदमी का अगर. पानी का बुलबुला है. फिर क्यों. अवसादों का गहरा. आदमी का. रे कवि! विपद&#2...

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सुरेश यादव सृजन: November 2010

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सुरेश यादव सृजन. मेरी चुनी हुई रचनायें. रविवार, 7 नवंबर 2010. अपनी बात. शिक्षार्थियों की समझ और संवेदना पर निर्भर करता है कि उसे किस रूप में ग्रहण करें। इस विराट पाठशाला का हर एक रूप अपने में सम्पूर्ण, विलक्षण. बहु-आयामी और सृजन को जन्म देने वाला है. पत्थर और नदी -. पहाड़ों. के पत्थर. जब ऊँचाइयों से टूटते हैं. तब - पत्थर बहुत. डूब कर भी नदी में. बहना चाहते नहीं. धार से जूझते हैं. विरोध करते हैं - पत्थर. सागर में समर्पित होने का. नदी के साथ. रेशा-रेशा घिस कर. तलहटी में बिछ कर. जकड़ कर धरती को. मेर&#23...

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सुरेश यादव सृजन: November 2011

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सुरेश यादव सृजन. मेरी चुनी हुई रचनायें. शनिवार, 5 नवंबर 2011. अपनी बात. सुरेश यादव. धार पा गए. गर्म दहकती भट्टी में. पड़े रहे तपते हुए. और एक दिन. ढलने का अहसास पा गए. संभव और कुछ नहीं था. इस हालात में. गर्म थे -. पिटे खूब. और एक दिन. धार पा गए. अपनी जड़ें लेकर. सूख चुके हैं. समय की धूप में. वे तमाम पौधे. रोपा था तुमने. बहुत फुरसत में जिन्हें. स्नेह के साथ. लेकिन खूब सूरत पत्थरों पर. नफ़रत में भरकर. जिन्हें कभी. जड़ों समेत उखाड़ा. वे –. जहाँ-जहाँ गिरे. अपनी जड़ें लेकर उठे. और, खड़े हो गए तनकर. लेबल: स&#2...

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सुरेश यादव सृजन: December 2010

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सुरेश यादव सृजन. मेरी चुनी हुई रचनायें. बुधवार, 8 दिसंबर 2010. अपनी बात. सुरेश यादव. होगा सत्य. सिद्धांत भी होगा. और अनुभव भी सारे ज़माने का. कि 'पानी आग बुझाता है'. देखा मैंने लेकिन. खुद अपनी आँखों से. दहकते अंगारों पर. जब गिरता पानी बूंद-बूंद. जल जाता है. शक्ति के हाथों. छलते हैं सिद्दांत कैसे. सत्य' कैसे शक्ति के हाथों मिट जाता है. महा युद्ध. खाकर कोई केला. फेंकता है छिलका. कोई निरपराध. बीच सड़क पर गिरता है. दूर खड़ा कोई जब. जोर-जोर से हँसता है. महायुद्ध. फिर कोई. समर्पण की उसकी. अमर बेल -सा. उगते ...

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यू.के. से प्राण शर्मा की दो लघुकथाएं | मंथन

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य क स प र ण शर म क द लघ कथ ए. 8216;र ज ‘. 8211; प र ण शर म. धर मप ल न ट ल फ न क च ग उठ कर सतप ल क फ न न बर म ल य .फ न क ल इन अ ग ज थ .” पत नह क ल ग फ न पर क य - क य ब त करत ह? घ ट ह लग द त ह .क स और क ब तकरन क म क़ ह नह द त ह .” ख झ कर उसन फ न पर च ग पटक द य . कमर म इधर-उधर चक कर लग कर धर मप ल न फ र सतप ल क फ न क य .द सर ओर स फ न क घ ट बज .धर मप ल क च हर पर सब र क प य ल छलक . 8221; क न? 8220;द सर और स सतप ल क आव ज़ थ . 8221; क स र ज क उगल द य म न? 8221; क य त म एक र ज क अपन द ल म नह रख सकत थ? धर मप ल क य द...

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अमेरिका से देवी नागरानी की दो लघुकथाएं | मंथन

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अम र क स द व न गर न क द लघ कथ ए. 8220;र म यह ठ ड म क य ब ठ ह? अ दर घर म ज ओ” गल क न क कड़ स ग ज रत ह ए द ख त उसक प स चल गय . र म म र ऑफ स क चपर स ह . 8220;स हब अ दर ब ट -ब ट क द स त आय ह ए ह . ग न -बज न श र-शर ब मच ह आ ह . सब झ म-ग रह ह . इसल ए म ब हर….” कहकर उसन ठ ड स स ल . 8220;त म ह र उम र क उन ह क ई फ़ क र नह , र त क ब रह बज रह ह और यह बर फ ल ठण ड! 8221; कहकर वह बच च क तरह ब लख पड . म न उसक क ध थपथप त ह ए न शब द र हत द न क असफल प रय स क य और स च म ड ब थ क अगर म उस ह लत म ह त त! 8220;नह म ल क! अगर आपक ज...

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भारत से सुभाष नीरव की दो लघु कथाएं | मंथन

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भ रत स स भ ष न रव क द लघ कथ ए. ल खक पर चय. ह द म लघ कथ ल खन क स थ-स थ, प ज ब -ह द लध कथ ओ क श र ष ठ अन व द ह त ”म त शरबत द व स म त प रस क र 1992” तथ ”म च प रस क र, 2000” स सम म न त. सम प रत :. भ रत सरक र क प त पर वहन व भ ग म अन भ ग अध क र (प रश सन). सम पर क :. 372, ट ईप-4, लक ष म ब ई नगर, नई द ल ल -110023. 09810534373, 011-24104912(न व स). एक और कस ब. म न यर न जल द स प ग अपन गल स न च उत र और ख ल ग ल स म ज पर रख ब ठक म आ गय. स फ पर ब ठ व यक त उन ह द खत ह ह थ ज ड़कर उठ खड़ ह आ. 8221;र मद न त म? 8221;और वह भ ...

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अभियान के साथी. गुरुवार, 28 जून 2012. अशोक रावत की गज़लें 8 जुलाई को. अशोक रावत की गज़लें. साखी के अगले अंक में. रविवार 8 जुलाई को।. कविता, उसके स्वरुप, जीवन में उसकी जरूरत पर कवि की टिप्पणी के साथ।. प्रस्तुतकर्ता. 4 टिप्‍पणियां:. इस संदेश के लिए लिंक. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. Facebook पर साझा करें. Pinterest पर साझा करें. शुक्रवार, 22 जून 2012. जाइबे को जगह नहीं, रहिबै को नहिं ठौर. कबीर यहु घर प्रेम का,. खाला का घर नाहिं. शीश उतारे हाथि करि,. कर सकते यहाँ. और आ जाना. जाओ,...

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अभियान के साथी. सोमवार, 18 जुलाई 2011. रचती तो कविता है कवि को. प्रकाश उपाध्याय. व्यंग्य यात्रा के संपादक डा प्रेम जनमेजय. वरिष्ठ कवि उमेश सिंह चौहान. की उपस्थिति महत्वपूर्ण रही. मेरे अनुज और कवि राजेश उत्साही. सद्भावना दर्पण के संपादक और लेखक गिरीश पंकज. जी ने कहा, हरे के सोच की उड़ान परिंदों के पर कतरने वाली है. वरिष्ठ कवि उमेश सिंह चौहान. प्रख्यात व्यंग्यकार प्रेम जनमेजय. ने कहा, मन को छू गईं ये पंक्तियाँ! सरल, सहज और संवेदनशील! अ-कृत्रिम! लेखक जाकिर अली. प्रस्तुतकर्ता. नई पोस्ट. 1 दिन पहले. कित...

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अभियान के साथी. शनिवार, 18 जून 2011. हरे प्रकाश उपाध्याय की चार कविताएँ. हरे प्रकाश उपाध्याय. को साखी. मुझे मेल कर दीं मैंने एक और रचना उनके संकलन से उठा ली, जो बदहवास समाज के बारे में है प्रस्तुत है हरे प्रकाश उपाध्याय की चार कविताएँ. माघ में गिरना. कविता मिली. बहुत दिनों के बाद. सावन के बाद माघ में. एक पेड़ के नीचे. पत्ते बुहार रही थी. चूल्हा जलाना था उसे शायद. हमने उलाहने नहीं दिए. उसने देखा एक नजर मेरी तरफ. उसे देखता रहा भौंचक. मैं रचता क्या उसे. हम देर तक देखते रहे. जिनकी आवाज न आए. जिन च&#236...

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अभियान के साथी. शनिवार, 24 सितंबर 2011. सर्वत जमाल की गजलें. सर्वत जमाल. एक एक जहन पर वही सवाल है. लहू लहू में आज फिर उबाल है. इमारतों में बसने वाले बस. मगर वो जिसके हाथ में कुदाल है? उजाले बाँटने की धुन तो आजकल. थकन से चूर चूर है, निढाल है. तरक्कियां तुम्हारे पास हैं तो हैं. हमारे पास भूख है, अकाल है. कलम का सौदा कीजिये, न चूकिए. सुना है कीमतों में फिर उछाल है. गरीब मिट गये तो ठीक होगा सब. अमीरी इस विचार पर निहाल है. हम आदमी हैं, यह भी इक कमाल है. एक ही आसमान सदियों से. खरा फिर भी ख&#2...कई सच तो ...

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अभियान के साथी. शनिवार, 15 सितंबर 2012. समकालीन सरोकार का प्रवेशांक पाठकों के हाथ में. प्रधान संपादक - सुभाष राय. संपादक - हरे प्रकाश उपाध्याय. फोन संपर्क- 9455081894, 8756219902. प्रस्तुतकर्ता. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. Facebook पर साझा करें. Pinterest पर साझा करें. 1 टिप्पणी:. 23 नवंबर 2012 को 4:16 pm. बधाई , पत्रिका के लिए।. उत्तर दें. टिप्पणी जोड़ें. अधिक लोड करें. पुरानी पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. युग-जमाना. समय के साक्षी बनें. मेरी ब्लॉग सूची. 1 दिन पहले. 5 दिन पहले. सुमन ज...

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अभियान के साथी. शनिवार, 31 दिसंबर 2011. नसीम साकेती की रचनाएँ. अपने आग भरे अल्फाज से ये सवाल उठाने वाले नसीम साकेती. १ पत्थरों का शहर. पहले आप.पहले आप. जेहन में उभरते ही. बिजली की तरह कौंध जाता है. शहर का नाम. जो कभी जाना जाता था. तहजीब और तमद्दुन के लिए. नजाकत और नफासत के लिए. प्यार और मुहब्बत के लिए. अम्न और शांति के लिए. भाई चारे के लिए. इंसानियत के लिए. सबसे बड़ी बात इज्जत के लिए. लेकिन आज? जिस शहर में खड़ा हूँ. ये तो वो शहर नहीं है. पहले आप.पहले आप के बजाय. मुझ पर डाल दे हाथ. क्या हुआ. तुम क&#23...

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