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सार्थक मीडिया: बच्चन
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सार्थक मीडिया. मीडिया के छात्रों के लिए अध्यन सामग्री जैसे हिंदी कहानिया,कवितायेँ और कोर्स सामग्री. बशीर बद्र. गुलज़ार. हरियाणवी. सआदत हसन मंटो. इस्मत चुगताई. मधुशाला. आदर्श प्रेम. प्यार किसी को करना लेकिन. कह कर उसे बताना क्या. अपने को अर्पण करना पर. और को अपनाना क्या. गुण का ग्राहक बनना लेकिन. गा कर उसे सुनना क्या. मन के कल्पित भावों से. ओरों को भ्रम में लाना क्या. ले लेना सुगंध सुमनों की. तोड़ उन्हें मुरझाना क्या. प्रेम हर पहनना लेकिन. देर कर ह्रदय ह्रदय पाने की. कोशिश करने वाल...अगणित उन्...रजनी...
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श्रोता बिरादरी: मेरी उमर से लम्बी हो गईं,बैरन रात जुदाई की
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2405;यूनुस खान की - रेडियोवाणी॥. 2405;सागर नाहर की गीतों की महफिल॥. 2405;संजय पटेल की सुरपेटी॥. लता स्वर उत्सव. श्रोता बिरादरी. यूनुस खान, संजय पटेल, सागर नाहर. Translate this Blog in English. कुछ संगीतमय चिट्ठे. जोगलिखी संजय पटेल की. रेडियोवाणी. रेडियोनामा. गीतों की महफिल. एक शाम मेरे नाम. पारुल की सरगम. किस से कहें. एक डॉक्टर की डायरी. कहाँ से पधारे आप. वाद- संवाद. दोस्तों की दुनियाँ. Tuesday, September 27, 2011. लता तिरासी और तिरासी अमर गीत:. फ़िल्म : सोसायटी. वर्ष : १९५५. September 28, 2011 at 8:07 AM.
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सुर-पेटी: 8/1/10
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सुर-पेटी. कानों में क्या पड़ गई नग़्मे की चार बूँद.आँखों के ख़ार कितने बहकर निकल गए. Sunday, August 8, 2010. मोरा अंग अंग रंगा क्यों रसिया-पीनाज़ मसानी. संजय पटेल. पीनाज़ मसानी. सुगम संगीत. Subscribe to: Posts (Atom). भले पधारो! सुरीली बिछात पर स्वागत है! सुर पेटी का मशालची. मोरा अंग अंग रंगा क्यों रसिया-पीनाज़ मसानी. मनचाहे शब्द-स्वर. कबाड़खाना. गीतों की महफिल. रेडियो वाणी. रेडियोनामा. मोहल्ला. जोग लिखी संजय पटेल की. किस से कहें? श्रोता बिरादरी. Picture Window template. Powered by Blogger.
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मंतव्य: April 2012
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हर बात पे कहते हो तुम के तू क्या है. तुम्ही कहो की अंदाज-ए-गुफ्तगू क्या है. Powered by Blogger. खुशबू मिटटी की . सच में अमर बेल की तरह बढ़ते इन सीमेंट के शहरों ने हमसे कितना कुछ छीन लिया है. शीर्षक समाज. 0 संदेश. कैसा लगा. आप पधारे. फेसबुक का ठिकाना. Kamal K. Jain. समय का पहिया चलता है. हम मिले. तेरे द्वारे. खुशबू जुदा जुदा. कारवां बनता गया. जाने. कब क्या कहा. खुशबू मिटटी की . फेस बुक पर भी मिले. अपने जैसे ही कुछ और. सवेरा होने तक. PRATILIPI / प्रतिलिपि. A Patron Saint for Broken Homes: Shahrukh Alam.
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मंतव्य: April 2013
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हर बात पे कहते हो तुम के तू क्या है. तुम्ही कहो की अंदाज-ए-गुफ्तगू क्या है. Powered by Blogger. सुना है. सुना है. अब भी उन सपनो की कथा सुनाती है,. अब भी आनासागर के किनारे प्यार की कसमे खायी जाती है,. दरगाह जाते हुए. मदार गेट पर अब भी किसी का यूँ ही इंतज़ार होता है,. बस स्टेंड की पार्किंग अब भी उसकी एक्टिवा से गुलज़ार है,. उसकी कमर अब भी पुष्कर की घाटियों सी बल खाती है,. माया मंदिर में आज भी उसका इंतज़ार होता है,. सुना है. सुना है. ख्वाजा साहब की दरगाह. मदार गेट. माया मंदिर. पुष्कर घाट. 0 संदेश. इन्...
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बेबाक: February 2008
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अपनी तो आदत है. या तो कहो नहीं, कहो तो बेबाक कहो. मंगलवार, 5 फ़रवरी 2008. क्यों नहीं खेलेगी सानिया? मृत्युंजय कुमार. 2 टिप्पणियां:. प्रतिक्रिया. नई पोस्ट. पुराने पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. सदस्यता लें संदेश (Atom). टिक.टिक.टिक. मेरे बारे में. मृत्युंजय कुमार. मेरा पूरा प्रोफ़ाइल देखें. आपने कहा. अंग्रेजी लिखें हिन्दी पायें. ब्लॉग आर्काइव. क्यों नहीं खेलेगी सानिया? इस राह पे. यह िरजेक्टेड माल हैं. हिंदी में मदद चाहिए तो यहां जाइए. मुखर प्रतिरोध. आवाज़ की दुनिया. चिट्ठाजगत.
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दिलीप के दिल से: January 2010
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दिलीप के दिल से. दिली सुकून की तलाश, आखिर दिल ही तो है. Monday, January 18, 2010. है दुनिया उसीकी,ज़माना उसीका. ओ पी नय्यर और रफ़ी का दर्द में डूबा हुआ एक कालजयी गीत. आज लगभग एक महिना होने आया, आपसे मुखातिब नहीं हो पाया. मेरी पसंद के दो महानतम दर्द भरे गानों की फ़ेहरिस्त में आपके दो गानें है:. चैन से हमको कभी . और. है दुनिया उसीकी, ज़माना उसीका. दिलीप कवठेकर. Labels: ओ.पी.नय्यर. दिलीप के दिल से. मोहम्मद रफ़ी. Subscribe to: Posts (Atom). ताऊ द्वारा सन्मान! ताऊ पहेली-48. के विजेता. ताऊ डाट इन. अल्...
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दिलीप के दिल से: May 2010
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दिलीप के दिल से. दिली सुकून की तलाश, आखिर दिल ही तो है. Sunday, May 23, 2010. अद्बुत , अद्भुत और अद्भुत . मुकुल शिवपुत्र - कुमार जी गंधर्व के पुत्र. जो अपने दम पर खुद एक बेहद ही उम्दा ,ऊंचे पाये के कसे हुए गायक हैं.शायद आपमें से काफ़ी लोग उनके बारे में जानते भी होंगे. मैंने कहा कि मैं भला ताऊ के आदेश का पालन नहीं करने की हिमाकत कर सकता हूं? आप और मुकुल शिवपुत्र. दिलीप कवठेकर. Labels: कुमार गंधर्व. Saturday, May 1, 2010. ये बात तो पक्की है, कि इतने दिन...कितनी बार आपसे वाद...मगर क्या कर...मगर जब जब...
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आओ कि कोई ख़्वाब बुनें ......: मुक्तक
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आओ कि कोई ख़्वाब बुनें . गुनगुनी सी हवा है बहूँ ना बहूँ. अजनबी वेदना है सहूँ ना सहूँ. मुस्कुराते हुए गीत और छन्द में. अनमनी सी व्यथा है कहूँ ना कहूँ? अनूप भार्गव. Labels: मुक्तक. Panne kai aur the shocha likhu ya na likhu,jab aaya tumhare dar par to bandhta hi chalaa gaya. 10:38 am, January 10, 2007. राकेश खंडेलवाल. जानता था कि पल पल अकेला ही हूँ. सोचता हूँ कहानी कहूँ न कहूँ. ताजमहली मुझे कर दिया पीर ने. इश्क पाकर तुम्हारा ढहूँ न ढहूँ. 12:10 pm, January 10, 2007. 9:37 pm, January 10, 2007. दिव्...
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