kartikeya-mishra.blogspot.com
मैनें आहुति बनकर देखा..: December 2008
http://kartikeya-mishra.blogspot.com/2008_12_01_archive.html
मैनें आहुति बनकर देखा. तुम मुझे आसमानों की बुलंदी से नही देखो, मुझे मिट्टी से पहचानो कि धरती से जुड़ा हूँ मैं. मुखपृष्ठ. मेरे बारे में. टिप्पणी. अब बुझा दो ये सिसकती हुई यादों के चिराग, इनसे कब हिज्र की रातों में उजाला होगा? By कार्तिकेय मिश्र (Kartikeya Mishra). न आए, तो लगता है अभी रात ही चल रही है, अभी ख्वाब टूटा नही है, अभी सुबह ठीक से हुई नही है।. सही ही है।. आम आदमी की जेब में पैसे न हों तो ईद,. कई शेड्स थे इनमें-. एक बात कॉमन. सिस्टम के लिए अनास्था।. जिनकी कलम की काफी...कों भी,. इन्ही&...लिए...
kartikeya-mishra.blogspot.com
मैनें आहुति बनकर देखा..: November 2008
http://kartikeya-mishra.blogspot.com/2008_11_01_archive.html
मैनें आहुति बनकर देखा. तुम मुझे आसमानों की बुलंदी से नही देखो, मुझे मिट्टी से पहचानो कि धरती से जुड़ा हूँ मैं. मुखपृष्ठ. मेरे बारे में. टिप्पणी. क्रोध भारतीय जनमानस का स्थाई भाव है, नपुंसकता राजनेताओं का. By कार्तिकेय मिश्र (Kartikeya Mishra). वक्त रहते शोक जता. लिया जाय तो अच्छा है। क्या पता नई. घटना कब हो जाए! मैं इसे एडिट कर क्रोध. मुझे याद है, वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमला हुआ, पहली इमारत गिरते-. गिरते बुश का बयान. राप्ती-गंडक के सारे तटबंध टूट ज...पाटिल साहब की. शहादत मेजर उन्न...माँ...आपकी...
kartikeya-mishra.blogspot.com
मैनें आहुति बनकर देखा..: September 2009
http://kartikeya-mishra.blogspot.com/2009_09_01_archive.html
मैनें आहुति बनकर देखा. तुम मुझे आसमानों की बुलंदी से नही देखो, मुझे मिट्टी से पहचानो कि धरती से जुड़ा हूँ मैं. मुखपृष्ठ. मेरे बारे में. टिप्पणी. 7 महीने 16 दिन बाद…. By कार्तिकेय मिश्र (Kartikeya Mishra). 27 जनवरी-12 सितम्बर. 7 महीने से उपर हो चुके कुछ लिखे और आज न लिखने का व्रत तोड़ बैठा।. सो अपने स्व में वापस लौटने का प्रयास करता हूँ।. ब्लॉगजगत में मेरे पथप्रदर्शक ‘सिद्धार्थ जी’. का उनसे पृथक एक ब्लॉग- ‘ टूटी-फूटी’. देखिये, मैं गिरिजेश जी. और हाँ पाबला साहब. ठेलोपरांत. और हाँ, हम केवल ...आलोक क...
kartikeya-mishra.blogspot.com
मैनें आहुति बनकर देखा..: December 2009
http://kartikeya-mishra.blogspot.com/2009_12_01_archive.html
मैनें आहुति बनकर देखा. तुम मुझे आसमानों की बुलंदी से नही देखो, मुझे मिट्टी से पहचानो कि धरती से जुड़ा हूँ मैं. मुखपृष्ठ. मेरे बारे में. टिप्पणी. ऐवेटॉर(अवतार).भव्य तकनीक के नीचे सांस लेता हुआ सा कुछ बचा रह गया है. By कार्तिकेय मिश्र (Kartikeya Mishra). कुछ दिन पहले एक फिल्म देखी. ऐवेटॉर/या अवतार. और टर्मिनेटर-द जजमेंट डे. अंतत: ढाई घंटे बाद जब आप सिनेमाहाल से बाहर निकलते हैं, तब क्षणजीवी अभिन...टाइटेनिक में भी भीमकाय सेट्स, हिमखंड और...इसी मोड़ पर आता है ‘ जैक. 8217; का पता चलता है...उसके व...
kartikeya-mishra.blogspot.com
मैनें आहुति बनकर देखा..: September 2010
http://kartikeya-mishra.blogspot.com/2010_09_01_archive.html
मैनें आहुति बनकर देखा. तुम मुझे आसमानों की बुलंदी से नही देखो, मुझे मिट्टी से पहचानो कि धरती से जुड़ा हूँ मैं. मुखपृष्ठ. मेरे बारे में. टिप्पणी. झंडूबाम, वेयो-हेयो, अनजाना.ऐ.ऐ.ऐ., यानी जो ग़ज़ल माशूक के जलवों से वाक़िफ हो गई उसको अब बेवा के माथे की शिक़न तक ले चलो।. By कार्तिकेय मिश्र (Kartikeya Mishra). अच्छा गाना बनाया है रहमान साहब ने- जियो, उठो, बढ़ो, जीतो! पी लूं. अनजाना.ऎ.ऎ.ऎ. लेकिन इनमें सब्सटांस कहाँ है? कभी सर्वहारा संगीत. पीयूष मिश्रा का " जिस कवि...वो भदेसपन नहीं पí...में ख...जैस...
kartikeya-mishra.blogspot.com
मैनें आहुति बनकर देखा..: January 2009
http://kartikeya-mishra.blogspot.com/2009_01_01_archive.html
मैनें आहुति बनकर देखा. तुम मुझे आसमानों की बुलंदी से नही देखो, मुझे मिट्टी से पहचानो कि धरती से जुड़ा हूँ मैं. मुखपृष्ठ. मेरे बारे में. टिप्पणी. किस जन-गण-मन अधिनायक की स्तुति करें? किस भाग्यविधाता के आगे झंडी लहरायें? By कार्तिकेय मिश्र (Kartikeya Mishra). लेकिन यह गणतंत्र है किसका? क्या इसी गणतंत्र का सपना देखती. हमारे राष्ट्रनायकों की आँखें मुंदी थीं? कुछ तो ग़लत है वरना मेरे आगे ये दीवार कैसी? कोई रास्ता क्यों नहीं सूझता? कहाँ है इनका गणतंत्र? कहीं सुना है. राष्ट्र. हम आज तक अपने आप को म&#...मैन...
kartikeya-mishra.blogspot.com
मैनें आहुति बनकर देखा..: February 2010
http://kartikeya-mishra.blogspot.com/2010_02_01_archive.html
मैनें आहुति बनकर देखा. तुम मुझे आसमानों की बुलंदी से नही देखो, मुझे मिट्टी से पहचानो कि धरती से जुड़ा हूँ मैं. मुखपृष्ठ. मेरे बारे में. टिप्पणी. संस्कार, सभ्यता, बाजारीकरण, नैतिकता की ठेकेदारी, और वैलेंटाइन डे के बहाने एक सच. By कार्तिकेय मिश्र (Kartikeya Mishra). अपने गिरिजेश जी. तो फगुनाहट में सराबोर हैं, उन्हें बखूबी साथ मिल रहा है अमरेन्द्र भाई. का, तथा हिमांशु भाई. 2404; कसमसा के रह गये गुरुजी।. द्रोणकलश जिसको कहते थे, आज वही मधुघट आला. अजी छोड़िये, अगर रात के 11 ब...कि स्कॉलर ब...और कल परसो...