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मेरी लेखनी: March 2009
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मेरी लेखनी. शनिवार, 14 मार्च 2009. अपनी पहचान. सुबह सुबह फ़ोन की घंटी बजी। ( हमारी सुबह ११ बजे के बाद ही होती है।. ना कोई रंग, न उमंग. कितना बोर जाती है ज़िन्दगी? खैर, सरिता ने जो हमें बताया उसे सुनकर हमारे पैरों तले ज़मीन ही खिसक गयी भाई। हालांकि हमें किसी मसाले की तलाश थी, पर यह? हमारी एक और ख़ास सहेली रेनू अपने पति से तलाक लेने जा रही थी। बस फिर क्या था? आज के बाद सरिता की बात का विश्वास ही नही करेंगे! सुना है चूहों को करंट पसंद है! क्यों? खाली खाली मतलब? सब कुछ बेमानी सा". ऐसे ही? सरिता न...रेन...
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मेरी लेखनी: April 2011
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मेरी लेखनी. गुरुवार, 28 अप्रैल 2011. सब ठीक है. हेल्लो". हाँ हेल्लो माँ". हाँ बेटा कैसी हो? मैं अच्छी हूँ. आप लोग कैसे हो? हम सब ठीक हैं. सब ठीक चल रहा है. पापा कैसे हैं? ठीक हैं. बस कल गिर गए थे. थोडा घुटने में दर्द है. वैसे सब ठीक है. अरे मुन्नू को लेकर पार्क गए थे. तो वहीँ पैर फिसल गया.". तो अकेले लेकर गए थे? सुजाता नहीं थी? सुजाता काम छोड़ गयी. तुम्हारी भाभी से खटपट हो गयी. ". तो भाभी लेकर जाती. पापा क्यों ले गए? भैया भाई कैसे हैं? कैसा चल रहा है? सब ठीक हैं. क्यों? क्या हुआ? बस सब ठीक है. उसकी...
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मेरी लेखनी: प्रमित
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मेरी लेखनी. रविवार, 6 फ़रवरी 2011. बहुत दिनों. या कहूँ कि बहुत महीनों बाद आज कुछ लिखने बैठी हूँ. डर है कहीं आप लोग मुझे भूल तो नहीं गए? खैर, इन महीनों में काफी कुछ बदल गया है. मेरा आखरी लेख अब २ पतझड़, २ सर्दियाँ, १ बसंत और १ गर्मी जितना पुराना हो चुका है. मेरी नन्ही गुड़िया अब दीदी बन कर रौब जमाती है. भैया को कब दुद्दू पीना हमें वो बताती है. उसको अब गुड्डे गुड़िया अपने नहीं भाते हैं. बुआ-फूफा, मौसी-मौसा कर रहे हैं इंतज़ार. प्रस्तुतकर्ता. लेबल: कविता. बात दिल की. ने कहा…. AANGAN KI KHUSHIYAAN DOBALA HUIN!
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मेरी लेखनी: नन्ही परी
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मेरी लेखनी. सोमवार, 6 अप्रैल 2009. नन्ही परी. उसके तीसरे जन्मदिन (११ फरवरी) के अवसर पर यह कविता बनाई थी पर ब्लॉग पर अब डाल रही हूँ. कल की जैसे बात हो, हमारे आँगन को उसने किया गुलज़ार. हमारी ज़िन्दगी में रस घोला, पूरे घर में आ गयी जैसे बहार. दादा-दादी, नाना-नानी को मिला नया खिलौना. पापा और माँ की बाहें बनी उसका बिछौना. पल पल में रोना ही थी सिर्फ उसकी भाषा. हम सब की मनौती, हम सबकी आशा. वो दिन भर की थकन के बाद रात भर का जागना. बस उसकी एक झलक से उस थकन का भागना. प्रस्तुतकर्ता. लेबल: कविता. बहुत सु...Achchi ka...
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मेरी लेखनी: राम नवमी और राम राज का सपना
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मेरी लेखनी. सोमवार, 11 अप्रैल 2011. राम नवमी और राम राज का सपना. वो खून कहो किस मतलब का जिसमे उबल का नाम नहीं. वो खून कहो किस मतलब का आ सके जो देश के काम नहीं. पर एक आदमी ने कोशिश की और नतीजा! सारा भारत एक तरफ और कुछ नेता एक तरफ. और कौन नहीं चाहता कि हमारा देश भ्रष्टाचार से मुक्त हो? प्रस्तुतकर्ता. लेबल: बात दिल की. 4 टिप्पणियां:. ने कहा…. Behad pasand aayi post! Smart Indian - स्मार्ट इंडियन. ने कहा…. भ्रष्टाचार मुक्त भारत! डॉ॰ मोनिका शर्मा. ने कहा…. Sunder Aalekh.Ramnavami ki shubhkamanyen. आईआईटì...
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मेरी लेखनी: January 2009
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मेरी लेखनी. शनिवार, 24 जनवरी 2009. कभी कभी कितनी कश्मकश हो जाती है जीवन में? मन कुछ चाहता है पर आप किसी को बोल नही सकते। कितना औपचारिक बन जाता है सब कुछ? पर आज तक मैं नहीं समझ पायी कि ऐसा क्यों होता है? किसी की खुशियों को क्यों नज़र लग जाती है? ऐसा आराम? अस्पताल में? प्रस्तुतकर्ता. 7 टिप्पणियां:. इस संदेश के लिए लिंक. लेबल: कहानी. नई पोस्ट. पुराने पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. सदस्यता लें संदेश (Atom). कुछ मेरे बारे में. Cedar Rapids, Iowa, United States. मेरे पसंदीदा. 16 घंटे पहले. 2 सप्ताह पहले.
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मेरी लेखनी: August 2008
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मेरी लेखनी. शुक्रवार, 22 अगस्त 2008. बस ऐसे ही. बारिश में भीगे हुए मन को बहलाती हूँ. सावन जो बीत गया, उसकी याद दिलाती हूँ. क्या वो तुम ही थे? जो मेरे साथ थे. यह सवाल कई कई बार ख़ुद से दोहराती हूँ।. फिर क्यूँ कूकी कोयल, गौरैया क्यूँ चहकी? नहीं हैं यहाँ फूल तो क्यूँ फिर बगिया महकी? पगली यह सावन है पतझड़ नहीं,. यही बात हर बार ख़ुद को समझाती हूँ. चूड़ीवाला हांक लगाता है, बार बार बुलाता है. अब इस घर में उसका काम नही. क्यूँ नहीं उसको बतलाती हूँ? अगले सूरज के साथ तुम आओ. लेबल: कविता. पर नहीं बस हम...खैर...
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मेरी लेखनी: July 2008
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मेरी लेखनी. बुधवार, 30 जुलाई 2008. बिना किसी शीर्षक के. आज फिर दिल पर चोट हुई है. आज फिर एक घर जला है. उस ने नहीं देखा किसी का धर्म. कहर तो बस अपने रास्ते चला है. सवेरे की रौशनी अलसाई है. दिन भी यहाँ आज थोड़ा मंद है. कल शाम यहाँ लाशें गिरी थीं. कल धमाकों में सूरज ढला है. मन्दिर की घंटियाँ बंद पड़ी हैं. अज़ान में भी आज आवाज़ नहीं है. मूक हो गए हैं मोहल्ले वाले. आज चुप रहना ही भला है. रहमान चाचा की बेगुनाह आँखे,. माफ़ी मांगती हैं उस राम से. जो बचपन से लेकर जवानी तक. इन बुजुर्ग. तुम, मैं और हम. जामन कí...
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मेरी लेखनी: मान भंग
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मेरी लेखनी. मंगलवार, 8 फ़रवरी 2011. मान भंग. बहुत हो गया. रोज़ की ही बात है। अब नहीं सहा जाता।". पूर्णिमा ने निश्चय कर लिया।. आर या पार। यह भी कोई जीवन है? बस बस ज्यादा मत बोलो। अगर तुम्हारे माँ-बाप होते तो? तो तुम्हें कौन सी रोक है? सारे काम तो अपने मन के ही करती हो। कभी कभी उनकी बात मान भी लोगी तो क्या बिगड़ जाएगा? और अगर तुम्हारी बहन एक हफ्ते बाद आ जायेगी तो उसका क्या बिगड़ जायेगा? अगले ही दिन उसने घोषणा की कि वह अपने मायके जा रह&...कुछ अन्दर से दरक गया पूर्णि...ऐसे कब तक चलेगा? मैंने...आप लí...