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नवनीत शर्मा: तीन नई कविताएँ
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नवनीत शर्मा. युवा कवि,ग़ज़लकार और पत्रकार. मेरी नज़र में नवनीत शर्मा. के पुत्र होने के साथ- सुपरिचित ग़ज़लकार श्री द्विजेंद्र ‘द्विज’. Sunday, February 3, 2013. तीन नई कविताएँ. अंबर जब कविता लिखता है. हर तबका नहीं सुनता. जब कविता लिखता है अंबर. पर सुनती हैं कच्चे घरों की स्लेटपोश छतें. सर्द मौसम में अंबर की भीगी हुई कविता. और मिलाती हैं सुर/. सुनते हैं इसे. फुटपाथ पर कंबल में लिपटे जिस्म. दांत किटकिटाते. और कुछ ऐसा कहते हुए. जो भाषा के लायक नहीं होता. एक असर यह भी. कंबल ओढ़. आती रहेगी. शाम को ल...लौट...
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नवनीत शर्मा: ....खुश्बुओं का डेरा है।
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नवनीत शर्मा. युवा कवि,ग़ज़लकार और पत्रकार. मेरी नज़र में नवनीत शर्मा. के पुत्र होने के साथ- सुपरिचित ग़ज़लकार श्री द्विजेंद्र ‘द्विज’. Wednesday, March 25, 2009. खुश्बुओं का डेरा है।. उनका जो ख़ुश्बुओं का डेरा है।. हाँ, वही ज़ह्र का बसेरा है।. सच के क़स्बे का जो अँधेरा है,. झूठ के शहर का सवेरा है।. मैं सिकंदर हूँ एक वक़्फ़े का,. तू मुक़द्दर है वक्त तेरा है।. दूर होकर भी पास है कितना,. जिसकी पलकों में अश्क मेरा है।. जो तुझे तुझ से छीनने आया,. March 25, 2009 at 7:17 AM. Waah behtarin lajawab gazal. बहुत ख...
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नवनीत शर्मा: December 2008
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नवनीत शर्मा. युवा कवि,ग़ज़लकार और पत्रकार. मेरी नज़र में नवनीत शर्मा. के पुत्र होने के साथ- सुपरिचित ग़ज़लकार श्री द्विजेंद्र ‘द्विज’. Wednesday, December 24, 2008. हरतरफ तू है. एक शेर की पंक्ति 'इंतज़ार और करो अगले जनम तक मेरा', को सुन कर कही गई नज़्म एक मुस्लसल नज़्म. जैसे सौदाई को बेवजह सुकूं मिलता है. मैं भटकता था बियाबान में साये की तरह. अपनी नाकामी-ए-ख्वासहिश पे पशेमां होकर. फर्ज़ के गांव में जज़्बात का मकां होकर. कौन ईसा है जिसे मेरी दवा याद रही. अब तेरी याद को आंखो म&#...हम नहीं ज़ख...सोचतì...
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नवनीत शर्मा: February 2013
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नवनीत शर्मा. युवा कवि,ग़ज़लकार और पत्रकार. मेरी नज़र में नवनीत शर्मा. के पुत्र होने के साथ- सुपरिचित ग़ज़लकार श्री द्विजेंद्र ‘द्विज’. Sunday, February 3, 2013. तीन नई कविताएँ. अंबर जब कविता लिखता है. हर तबका नहीं सुनता. जब कविता लिखता है अंबर. पर सुनती हैं कच्चे घरों की स्लेटपोश छतें. सर्द मौसम में अंबर की भीगी हुई कविता. और मिलाती हैं सुर/. सुनते हैं इसे. फुटपाथ पर कंबल में लिपटे जिस्म. दांत किटकिटाते. और कुछ ऐसा कहते हुए. जो भाषा के लायक नहीं होता. एक असर यह भी. कंबल ओढ़. आती रहेगी. शाम को ल...लौट...
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नवनीत शर्मा: तुम उधर मत जाना
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नवनीत शर्मा. युवा कवि,ग़ज़लकार और पत्रकार. मेरी नज़र में नवनीत शर्मा. के पुत्र होने के साथ- सुपरिचित ग़ज़लकार श्री द्विजेंद्र ‘द्विज’. Wednesday, May 20, 2009. तुम उधर मत जाना. अमन काचरू. क्षमायाचना. राजधानी के अपराध आंकड़ों को छोड़. जब चला एक शांत कस्बे के लिए. निश्चिंत था मैं।. ठंडी हवाओं ने बताया. यहां सुकुन है,. यहां के लोगों में है कुछ ऐसा कि. देवता का जिक्र आता ही है।. यहां वातावरण में गूंजती है. भगवान तैयार हो रहे हैं यहां. लेकिन धूपभरी एक दोपहर. मुझे बताया एक बरगद ने. लेकिन उसके खर&...मेरा...
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नवनीत शर्मा: तुम्हारे शहर की बस
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नवनीत शर्मा. युवा कवि,ग़ज़लकार और पत्रकार. मेरी नज़र में नवनीत शर्मा. के पुत्र होने के साथ- सुपरिचित ग़ज़लकार श्री द्विजेंद्र ‘द्विज’. Friday, February 6, 2009. तुम्हारे शहर की बस. यह बस तुम्हारे शहर से आई है. ड्राइवर के माथे पर. पहुँचने की खुशी. थके हुए इंजन की आवाज. धूल से आंख मलते. खिड़कियों के शीशे. सबने यही कहा. दूर बहुत ही दूर है तुम्हारा शहर. यह बस देखती है. तुम्हारे शहर का सवेरा. मेरे गाँव की साँझ. सवाल पूछता है मन. जब कभी पहुँचती है. थकी-माँदी।. सतपाल ख़्याल. प्रकाश बादल. Masoomiyat, nazakat,khyaal.
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नवनीत शर्मा: ---हम अपना अम्बर ढूँढ रहे हैं
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नवनीत शर्मा. युवा कवि,ग़ज़लकार और पत्रकार. मेरी नज़र में नवनीत शर्मा. के पुत्र होने के साथ- सुपरिचित ग़ज़लकार श्री द्विजेंद्र ‘द्विज’. Monday, March 2, 2009. हम अपना अम्बर ढूँढ रहे हैं. बेहतर दुनिया, अच्छी बातें, पागल शायर ढूँढ रहे हैं।. ज़हरीली बस्ती में यारो, हम अमृतसर ढूँढ रहे हैं।. ख़ालिस उल्फ़त,प्यार- महब्बत, ख़्वाब यक़ीं के हैं आंखों में,. दिल हज़रत के भी क्या कहने! बीता मंज़र ढूँढ रहे हैं।. महेन्द्र मिश्र. March 2, 2009 at 7:22 AM. योगेन्द्र मौदगिल. March 2, 2009 at 6:23 PM. क्या ज...बाव...
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नवनीत शर्मा: ख़्वाब कुछ बेहतरीन......
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नवनीत शर्मा. युवा कवि,ग़ज़लकार और पत्रकार. मेरी नज़र में नवनीत शर्मा. के पुत्र होने के साथ- सुपरिचित ग़ज़लकार श्री द्विजेंद्र ‘द्विज’. Tuesday, March 17, 2009. ख़्वाब कुछ बेहतरीन. वहम जब भी यक़ीन हो जाएँ. हौसले सब ज़मीन हो जाएँ. ख़्वाब कुछ बेहतरीन हो जाएँ,. सच अगर बदतरीन हो जाएँ. ना—नुकर की वो संकरी गलियाँ,. हम कहाँ तक महीन हो जाएँ. ख़ुद से कटते हैं और मरते हैं,. लोग जब भी मशीन हो जाएँ. आपको आप ही उठाएँगे,. चाहे वृश्चिक या मीन हो जाएँ. गौतम राजरिशी. शुक्रिया प्रकाश भाई! March 17, 2009 at 8:25 AM. मेर...
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नवनीत शर्मा: ..हर मकां भी तो घर नहीं होता
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नवनीत शर्मा. युवा कवि,ग़ज़लकार और पत्रकार. मेरी नज़र में नवनीत शर्मा. के पुत्र होने के साथ- सुपरिचित ग़ज़लकार श्री द्विजेंद्र ‘द्विज’. Sunday, October 4, 2009. हर मकां भी तो घर नहीं होता. यह जो बस्ती में डर नहीं होता. सबका सजदे में सर नहीं होता. तेरे दिल में अगर नहीं होता. मैं भी तेरी डगर नहीं होता. रेत के घर पहाड़ की दस्तक. वाक़िया ये ख़बर नही होता. ख़ुदपरस्ती ये आदतों का लिहाफ़. ख़्वाब तो हैं गजर नहीं होता. मंज़िलें जिनको रोक लेती हैं. उनका कोई सफ़र नहीं होता. क्या बात है! बहुत ख़ूब! नीरज गोस...मंज...