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मैं शुभम: गणेश जी की दुनिया
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मैं शुभम. मैं शुभम सचदेव. यही दिन - यही मौज! यह रहा छिपा ख़ज़ाना. हर दिन हीरो बनता जाता. गणेश जी की दुनिया. मिलिए मेरे दोस्तों से. पाखी की दुनिया. नन्हे-सुमन. चुन-चुन गाती चिडिया. बच्चों की दुनिया. नन्ही परी. बालमुस्कान. चुलबुली. टाबर-टोली. फ़ूल-बगिया. शनिवार, 11 सितंबर 2010. गणेश जी की दुनिया. नमस्कार दोसतो ,. गणेश जी की दुनिया. फ़ाईट.पर क्यों? फ़िर . फ़िर दोनों नें एक फ़ैसला किया ।. कैसा फ़ैसला? तो क्या हुआ? फ़िर तो गणेश जी हार गए होंगे? क्या किया? अरे , तुम तो लेज़ी ब&...क्या कहा? मैं स्...मैन...
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मैं शुभम: हर दिन हीरो बनता जाता
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मैं शुभम. मैं शुभम सचदेव. यही दिन - यही मौज! यह रहा छिपा ख़ज़ाना. हर दिन हीरो बनता जाता. गणेश जी की दुनिया. मिलिए मेरे दोस्तों से. पाखी की दुनिया. नन्हे-सुमन. चुन-चुन गाती चिडिया. बच्चों की दुनिया. नन्ही परी. बालमुस्कान. चुलबुली. टाबर-टोली. फ़ूल-बगिया. शनिवार, 18 सितंबर 2010. हर दिन हीरो बनता जाता. पिऊं दूध और खाऊं मलाई. अच्छी लगती मुझे मिठाई. थोडा-थोडा बढता जाता. हर दिन हीरो बनता जाता. प्रस्तुतकर्ता. सीमा सचदेव. लेबल: हर दिन हीरो बनता जाता. 13 टिप्पणियां:. ने कहा…. ने कहा…. ने कहा…. मन को भान&...दीन...
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काव्य तरंग: March 2010
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काव्य तरंग. हिन्दी काव्य संग्रह . Thursday, March 25, 2010. कसक दिल की. सजदे कितने किये. चोखट पर तेरी. पर दर्द दिल का. हुआ न कम. खुशियों की सहर. नहीं शायद. किस्मत में अपनी. ग़म की अँधेरी रात में ही. निकलेगा ये दम. जिनकी आरज़ू में. मिटाया था. खुद को जहां से. दिया भी. उनसे सजदे में. यार के. ये मतलब की. दुनिया. घड़ी भर में. बदलती है. नासमझ थे. जो न समझे. के साथ. बदलते है. प्यार के. वो ही थे न शामिल. मैय्यत में शहीद की. जो अपनी ही कब्रें. सज़ाने गए थे. मज़ारों पर उनकी. न जले दो दिए भी. Tuesday, March 23, 2010.
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काव्य तरंग: परियों की रानी.....अनुष्का
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काव्य तरंग. हिन्दी काव्य संग्रह . Tuesday, April 26, 2011. परियों की रानी.अनुष्का. ओ लाडली, मेरी छैल छबीली. तितलियों सी है चंचल, फूलों सी रंगीली. परियों की रानी, ओ राजदुलारी. तेरी अदाएँ, जहां से निराली. मेरे अंगना में चहके है, चिड़ियों सी ऐसे. मधुर संगीत घोले है, कानों में जैसे. मुस्कराहट सलोनी, लगे प्यारी प्यारी. देख देख मैं तुझको, जाऊं वारी वारी. तू किरणों सी उज्वल, गीतों सी रसीली. है नदियों निश्छल, पर्वतों सी हठीली. मेरे जीवन की आशा, इन नयनो का सपना. नो से खैली. Labels: अनुष्का. परियों...शाह...
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काव्य तरंग: January 2011
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काव्य तरंग. हिन्दी काव्य संग्रह . Friday, January 21, 2011. मृग मरिचिका. यथार्थ और परिकल्पनाओं के अधर. भावनाओं के सागर में उठती लहर. सत्य समझ छद्म आभासों को. पाने को लालायित हुआ ह्रदय. समक्ष यथार्थ के आते ही. आभास क्षणभर में हुआ विलय. तड़पता तरसता व्यथित मन. नित्य प्रतिक्षण बढ़ती तृष्णा का सार पाना चाहता है. अंतरतम की इस तृष्णा से पार पाना चाहता है. होता प्रतीत यथार्थ सा किन्तु. आभास सदा आभास ही तो है. जब लोभ सरिता तट पर गए तो. काट कर व्यर्थ जंजाल सभी. कचोट कर मन से अवसाद सभी. साध पंख. 171; Older Posts.
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काव्य तरंग: क्या नाम दें?
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काव्य तरंग. हिन्दी काव्य संग्रह . Sunday, March 13, 2011. क्या नाम दें? अहसासों का इक बंधन. जहाँ बिन बोले ही. सुनाता है मन . न नज़र मिले,न ख़बर मगर. दिल का दर्द. समझ में आता है. दुःख में दुःख. खुशियों से खुशियाँ. मुश्किल में मन घबराता है. न कहे कभी. पर दिल के गीले. शब्द सुनाई देते है. मिले नहीं पर रूह के. रूखे ज़ख्म. दिखाई देते है. तन्हाई के. चुभते पलों में. मन में मख़मल सा. अहसास लगे. दुरी मीलों की फिर भी. हर पल दिल को. दिल के पास लगे . इस रिश्ते का. कोई नाम नहीं. मगर दुआओं का. भला- बुरा. बहुत ह...
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काव्य तरंग: October 2010
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काव्य तरंग. हिन्दी काव्य संग्रह . Tuesday, October 26, 2010. जनम जनम का साथ- - - - - -रानीविशाल. मांग सिंदूर, माथे पर बिंदिया. रचाई मेहंदी दोनों हाथ. साज सिंगार कर, आज मैं निखरी. लिए भाग सुहाग की आस. प्रिय यह जनम जनम का साथ. पुण्य घड़ी का पुण्य मिलन बना. मेरे जग जीवन की आस. पूर्ण हुई मैं, परिपूर्ण आभिलाषा. जब से पाया पुनीत यह साथ. प्रिय यह जनम जनम का साथ. व्रत, पूजन कर दे अर्ध्य चन्द्र को. मांगू आशीष विशाल ये आज. जियूं सुहागन, मरू सुगागन. रहे अमर प्रेम सदा साथ. सादर प्रणाम. Labels: करवा चौथ. तब देख&...
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काव्य तरंग: November 2010
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काव्य तरंग. हिन्दी काव्य संग्रह . Friday, November 12, 2010. दुआएँ भी दर्द देती है. दुआएँ भी दर्द देती है. दवाओं की ख़ता क्या है. दगाओं से भरा मेरा दामन. तो इक तेरी वफ़ा क्या है. दुआएँ भी दर्द देती है. दवाओं की ख़ता क्या है. चटक कर बह उठा ये तो. है लावा दर्द का दिल के. हमदर्दी ना रास आई. भला दिल की ख़ता क्या है. दुआएँ भी दर्द देती है. दवाओं की ख़ता क्या है. अब तो दिन रात हर पल. अश्कों की बरसात होती है. वो कहते है बहार आई. दुआएँ भी दर्द देती है. हजारों ज़ख्म देता है. Labels: काव्य तरंग. चाहत बु...मुश...
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काव्य तरंग: April 2010
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काव्य तरंग. हिन्दी काव्य संग्रह . Monday, April 19, 2010. कभी देखी है ऐसी मनुहार? दो कविताएँ {रानीविशाल}. प्रेमीयों. जिन्हें. कविताएँ. क्रिया. वार्तालाप. जीवन की बहुत ही सुन्दर अविस्मर्णीय. स्मृति की बात है . हमारे घर में मेरे दादाजी (बप्पा), पिताजी. डै डीजी). माताजी. माई ), भाईसाब और दोनों छोटे भाई सबके सब कविताओं के बहुत शौक़ीन है ।. हाल तो आप से छुपा नहीं ।. हर कोई अपने स्तर पर जबरदस्त तैयारियों में लगा था. रचना का शीर्षक था "मीठी मनुहार". जो ये रही . मनमोहिनी सी इस बेल...भाईसाहब की...की ...
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